Saturday, January 9, 2016

आचार्य रत्नसुंदरसूरीश्वरजी महाराज सुरीजी का आर्शीवाद लेने के लिए मुरारी बापू, अभिनेता रजनिश दुग्गल, गायिका स्वाती शर्मा, निर्देशक राजीव रुईया और प्रदिप शर्मा साहित्य सत्कार समारोह, यात्रा ३०० सायन स्थित सोमैया ग्राऊन्ड पर आये

सरस्वती प्रसाद, प्रभावक प्रवचनकार प.पू. रत्नसुंदरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ने यात्रा ३०० में आज श्रुत उपासना महोत्सव में प्रवचन देते हुए कहा कि आज की शिक्षा व्यवस्था में विज्ञान ने Information और knowledge के बारे में बहुत बताया पर wisdom में पीछे ही रहा है। हमने संसार में ऋण कम किया इसलिए संसार बढ़ा नहीं है बल्कि पाप ज्यादा किए हैं इसलिए संसार की वृद्धि हुई है।
 महाराज साहेब ने बताया कि हम व्यसनमुक्त, पापमुक्त एवं प्रसादयुक्त बने। पाप दो प्रकार के हैं – कई पाप ऐसे हैं, जिनके पीछे हम पड़े हैं जैसे – हॉटल जाना, क्लब जाना वगैरह और कई पाप ऐसे है जो हमारे पीछे पड़े है – जैसे नारी को रसोईघर में कई पाप मजबूरन करने पड़ते है।
महाराज साहेब को एक पोस्ट कार्ड लिखना भी मुश्किल था उन्होंने ३००-३०० पुस्तकों पर अनेक विषयों पर विवेचन किया। गुरु के प्रति समर्पण भाव का यह जीता-जागता उदाहरण है।
 पूज्यश्री ने बताया कि काटा, घाव और छोटी-सी चिंगारी को कभी छोटा मत समझना क्योंकि वह भयंकर स्वरुप हो सकती है इसी प्रकार किसी भी पाप को छोटा मत समझना।
 शुद्धि और मुक्ति दिलाए वह ज्ञान है। चट्टान से पत्थर निकले वह product value (cost), पत्थर से प्रतिमा बने वह market value (price) है, लेकिन प्रतिमा से से शुभ भाव की उत्पति होना value है।
 महाराज साहेब ने बताया कि मैं तो केवल कुरियर हूं। भगवान के वचनों की डिलीवरी करता हूं। जो सत्कार्य करता है उनकी अनुमोदना न करे तो भी सम्ययदर्शन को क्षति पहुंचती है।
आज प्रवचनसभा में मुरारीजी बापू आए थे। उन्होंने भी अपनी सरल शैली में श्रुत को महत्व दिया। उन्होंने कहा कि महाराजसाहेब मैं भी आपकी सारी पुस्तकें पढ़ता हूं और जो मेरे दिल को बातें छु जाती है वह मेरी कथा में जनता को बताता हूं।
 मुरारी बापू ने रत्नसुंदरसूरीश्वरजी महाराज साहेब के साथ बांद्रायणी का नाता जोडते हुए कहा कि इन दस दिनों में धर्म का महान कार्य हुआ है। मुझे बड़ी खुशी हुई है। प्रेम व भाव था इसलिए मैंने आज मौन व्रत तोड़ दिया है। ३०० वें पुस्तक के लिए मैं मेरी प्रसन्नता व्यक्त करता हूं। मुंबई नगरी में लोग इतने व्यस्त होने के बावजूद भारी मात्रा लोगों ने इसका लाभ उठाया है। मैं भी गृहस्थ जीवन जी रहा हूं, इसलिए मैं अपने आपको छोटा साधू मानता हूं। किसी भी वेष में अथवा भाषा में दर्शन करने और धर्मलाभ के लिए आया हूं। सम्यक विचारों में जीना चाहिए। साधू को शाल की जगह मशाल भेट देनी चाहिए, क्योंकि उस मशाल की ज्वलंत ज्योति से समाज को जगाने का महान धर्म का कार्य संपन्न हो सकता है। भरोसा ही भजन है, ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है। विवेक में जीना चाहिए और समाज में विवेक जागरूक करना चाहिए। विचारों में जीए और विश्वास में जीए। रत्नसुंदरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ने ३०० पुस्तके लिखने का बड़ा ही अच्छा कार्य किया है।
 अभिनेता रजनिश दुग्गल ने बताया कि साहित्य सत्कार समारोह में युवा पिढी के लिए ऊर्जा प्रदान करने का कार्य सपंन्न हुआ है और इस समारोह में आकर बहुत ही अच्छा लगा है।
 गायिका स्वाती शर्मा ने कहा कि मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझती हूं कि इस तरह के धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य में मुझे आने का अवसर मिला है। मुझे बहुत ही खुशी हुई है।

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