Tuesday, December 29, 2020

फिल्म "मि इंडिया " के कैलेंडर यानि सतीश कौशिक


 अभिनेता सतीश कौशिक को दर्शक आज भी सबसे ज्यादा फिल्म "मि इंडिया " के कैलेंडर के नाम से जानते हैं।  हालाँकि उन्होंने अनेकों फिल्मों में शानदार अभिनय किया है।  ६४ साल के इस अभिनेता ने फिल्मों , टी वी और थियेटर सभी जगह खूब काम किया है।  बतौर अभिनेता तो उन्होंने अपनी जगह बनाई ही है साथ में एक लेखक और निर्देशक के रूप में भी उन्होंने बहुत काम किया है। १९८९  में फिल्म "राम लखन " और १९९६  में फिल्म "साजन चले ससुराल " इन दो फिल्मों के लिए सतीश को सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिल चुका है। ७ जनवरी को ओ टी टी प्लेटफॉर्म और सिनेमा घरों ,दोनों जगह उनकी फिल्म "कागज " रिलीज़ होने वाली है।  एक लेखक , निर्देशक और एक अभिनेता , तीनों ही रूपों में सतीश इस फिल्म से जुड़े हुए हैं। 

  
१३ अप्रैल १९५६,महेंद्रगढ़ में जन्में सतीश ने  दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और यही से उन्हें नाटक देखने और उसमें अभिनय का रुझान हुआ। इसके लिये उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिला ले लिया। दिल्ली से ८०० रुपये लेकर मुंबई चले सतीश ने हिंदी फिल्मों में अपना एक अलग मुकाम बनाया है। सतीश कौशिक ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर सहायक फिल्म "मासूम" से की । कैसे उन्हें निर्देशक शेखर कपूर के सहायक का  काम मिला। इसके बारें में उन्होंने एक रोचक किस्सा बताया कि , " स्व अभिनेता शम्मी कपूर जी का एक बॉय था। डबिंग स्टूडियो में कई बार मिलते हुए मेरी उससे दोस्ती हो गयी थी। उसने मुझे शेखर कपूर के बारें में बताया कि ,"शेखर को एक सहायक के जरूरत है। उसी ने मुझे शेखर कपूर का नंबर भी दिया। मैं शेखर से मिला भी अपने काम के लिए। लेकिन बाद में पता चला कि किसी राज कुमार संतोषी को उन्होंने अपने सहायक रख लिया है, मैं बहुत निराश हुआ लेकिन कुछ दिनों बाद शेखर का मुझे फोन आया कि अगर तुम मेरे साथ काम करना चाहते हो,तो आ जाना। बस क्या था मैं शेखर कपूर से जुड़ गया।  उनके साथ मेरी पहली फिल्म थी "मासूम। " इसमें मैंने बतौर सहायक और एक अभिनेता दोनों रूपों में  काम किया।"     

जहाँ तक हम उनकी हास्य फिल्मों की बात करें तो सबसे पहला नाम आता है क्लासिक फिल्म "जाने भी दो यारों"  (१९८३ ) का। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया और इसके संवाद भी लिखे रंजीत कपूर के साथ मिलकर। इस फिल्म में वो भ्र्ष्ट कांट्रेक्टर के सहायक बने थे। इसके बाद उनकी फिल्म आयी "मिस्टर इंडिया " जिसने उनकी जिंदगी ही पूरी तरह से बदल दी। इस फिल्म के दो किरदार आज भी दर्शकों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं एक है मोंगैंबो का और दूसरा है कैलेंडर का। कैलेंडर बन कर पतले सतीश ने दर्शकों को बेहद लुभाया। इसके बाद आयी १९८९ की लोकप्रिय फिल्म "राम लखन। " निर्देशक सुभाष घई की इस मल्टी स्टारर फिल्म में वो अनुपम खेर के नौकर की भूमिका में थे।  नौकर बन कर भी सतीश ने दर्शकों को बहुत हँसाया। इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला था। इसके बाद फिल्म "साजन चले ससुराल " ( १९९६ ) में उन्होंने मुतु स्वामी के किरदार में एक बार फिर दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया और फिर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का अवार्ड हासिल किया। १९९७ में आयी फिल्म "दीवाना मस्ताना  " उन्होंने पप्पू पेजर बनकर दर्शकों को हँसाया। ये दोनों ही फ़िल्में निर्देशक डेविड धवन की हैं। सन २००२ में आयी डेविड धवन की फिल्म "हम किसी से कम नहीं" इस फिल्म में भी उन्होंने फिर पप्पू पेजर बनकर दर्शकों की वाहवाही लूटी। फिल्म "बड़े मियाँ छोटे मियाँ ,परदेसी बाबू ,राजा जी, हसीना मान जायेगी , दुल्हन हम ले जायेगें , हद कर दी आपने , डू नॉट डिस्टर्ब , डबल धमाल , छलाँग आदि फिल्मों में हास्य अभिनय करके दर्शकों का आज तक मनोरंजन किया है सतीश कौशिक ने। 

 ऐसा नहीं है उन्होंने केवल हिंदी फ़िल्में की की । उन्होंने २००७ में  ब्रिटिश निर्देशक साराह गेवरॉन की फिल्म " ब्रिक लेन " में भी अभिनय किया है। इस फिल्म में उन्होंने चानू अहमद का किरदार अभिनीत किया था। अपने किरदार को सशक्त बनाने के लिये उन्होंने वर्क शॉप्स ली और साथ में अंग्रेजी की क्लासेज भी ली। एक  बांग्ला देसी लड़की की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म में उनके साथ तनिष्ठा चटर्जी भी थीं।  अच्छी भूमिका थी सतीश की लेकिन फिल्म सफल नहीं हुई। अपनी इस फिल्म के लिए सतीश को बहुत अफ़सोस है कि इस फिल्म को दर्शकों ने देखा तक नहीं। 

सतीश ने अभिनय ही नहीं किया बल्कि उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया। हालाँकि उनकी निर्देशित अधिकतर फ़िल्में असफल ही रही हैं। उनकी पहली निर्देशित फिल्म थी १९९३ की सबसे मँहगी और असफल फिल्म "रूप की रानी चोरों का राजा। " अनिल कपूर और श्री देवी की जोड़ी भी इस फिल्म को नहीं बचा पायी। इसके बाद आयी १९९५ में "प्रेम " संजय कपूर और तब्बू की पहली फिल्म। यह भी औंधे मुँह जा गिरी। १९९६ में आयी फिल्म " मिस्टर बेचारा " के निर्माता थे सतीश। यह फिल्म भी बेचारी ही साबित हुई। १९९९ में आयी "हम आपके दिल में रहते हैं " इसे भी कुछ ज्यादा सफलता  नहीं मिली। २००० में हमारा दिल आपके पास है ,२००१ में मुझे कुछ कहना है दोनों ही फ़िल्में सफल रहीं। २००२ में आयी "बधाई हो बधाई " भी असफल फिल्म रही। २००३ में आयी फिल्म " तेरे नाम " सलमान खान और भूमिका चावला की इस फिल्म ने सफलता के परचम लहरा दिये। वादा (२००५ ) शादी से पहले (२००६ ) कर्ज  (२००८ ) तेरे संग ( २००९ ) मिलेगें मिलेगें ( २०१० ) गैंग ऑफ़ घोस्ट (२०१० ) यह सभी फ़िल्में असफल रहीं। अब दर्शकों को उनकी आने वाली फिल्म "कागज़ " का इंतज़ार है।  इस फिल्म में अभिनेता पंकज त्रिपाठी मुख्य भूमिका में हैं। सुनने में यह भी आ रहा है कि सतीश लोकप्रिय फिल्म "तेरे नाम " का सीक्वेल भी बना रहे हैं। 
सतीश के परिवार में उनकी पत्नी शशि कौशिक और बेटी वंशिका कौशिक और बेटा शानू कौशिक हैं। 

Tuesday, December 15, 2020

टीकू तलसानिया को  शूटिंग , पैराग्लाइडिंग और फोटोग्राफ़ी का भी शौक है

 टी वी और फिल्मों में आने से पहले अभिनेता टीकू तलसानिया गुजराती थियेटर से जुड़े हुए थे। वहीँ उनके अभिनय से प्रभावित होकर निर्देशक कुंदन शाह ने उन्हें टी वी के लोकप्रिय हास्य धारावाहिक "ये जो है जिंदगी " ( १९८४ ) में काम करने का मौका दिया। इस धारावाहिक में अभिनय करके टीकू तो रातो रात दर्शकों में लोकप्रिय हुए ही साथ में उनका संवाद " ये क्या हो रहा है " भी बहुत लोकप्रिय हुआ। 




 ४० सालों से ज्यादा अभिनय से जुड़े  टीकू के घर में जहाँ अधिकतर डॉ ही हैं वहीं टीकू की दिलचस्पी अभिनय की ओर थी। बचपन से ही वो अभिनेता बनना चाहते थे , वो स्कूल में होने वाले नाटकों में हिस्सा लेते रहते थे। बाद में वो प्रवीण जोशी के थियेटर ग्रुप से जुड़ गये। टीकू पूरी तरह से अभिनय के रंग में रंग चुके थे जबकि उनके पिता चाहते थे कि वो डॉ ही बने लेकिन उनकी माँ का उन्हें पूरा सपोर्ट था। इस बारे में टीकू का कहना है कि , "  जब मैंने अभिनय करने का सोचा उस समय फिल्मों में काम करने वाले को सम्मान से नहीं देखा जाता था। यह वजह थी कि पापा नहीं चाहते थे कि मैं इस क्षेत्र में जाऊँ। "

टीकू ने निर्देशक कुंदन शाह के साथ टी वी में ही नहीं बल्कि फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने उनके साथ लोकप्रिय हास्य फिल्म "जाने भी दो यारों " के अलावा कभी हाँ कभी ना , क्या कहना और दिल है तुम्हारा आदि फिल्मों में भी काम किया। जब कभी उन्हें टी वी और फिल्मों से फुरसत मिलती है तो वो अमेरिका और यूरोप के कई नाटकों में भी हिस्सा लेते हैं।  साथ ही टीकू खुद को एक ट्रेवलर मानते हैं। अपने खाली वक्त में वो अपनी बाइक से अलग - अलग शहरों की यात्रायें भी कर चुके हैं। बाइक से वो लद्दाख भी जा चुके हैं। इसके अलावा उन्हें शूटिंग , पैराग्लाइडिंग और फोटोग्राफ़ी का भी शौक है। 
 
टीकू का जन्म ७ जून १९५४ को मुंबई  में हुआ। उन्होंने मुंबई विश्व विद्यालय से स्नातक  पढ़ाई की है। दिल्ली के बारें में बात करते हुए ,"टीकू कहते हैं कि उन्हें दिल्ली के छोले - भटूरे  और कबाब बहुत पसंद हैं लेकिन यहाँ गर्मी बहुत पड़ती है। मैंने यहां मई के महीने में भी शूटिंग की है।  ऐसी भरी गर्मी में काम का अनुभव आज भी मुझे याद है।"   

सही मायने में फिल्मों में टीकू के अभिनय की शुरुआत १९८६ में निर्देशक राजीव मेहरा की फिल्म "प्यार के दो पल " से हुई थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक करके वो अनेकों फिल्मों में काम करते गये और अपने हास्य अभिनय से दर्शकों को हँसाते गये। यूँ तो टीकू ने २०० फिल्मों में काम किया है।लेकिन उनकी कुछ फ़िल्में ऐसी हैं जिन्हें आज भी दर्शक बार - बार देखना पसंद करते हैं इन सभी फिल्मों में उनका अभिनय भी लाजवाब था। दिल है कि मानता नहीं , कभी हाँ कभी ना ,अंदाज़ अपना अपना , दरार ,राजा , बोल राधा बोल ,मिस्टर बेचारा  ,राजा हिन्दुस्तानी ,इश्क़ , जुड़वाँ ,हीरो नंबर १ , डुप्लीकेट ,प्यार तो होना ही था , जल्लाद , सुहाग ,फिर हेरा फेरी , हँगामा , धमाल ,ढोल , पार्टनर ,वन्स अपॉन ए टाइम मुंबई दोबारा ,स्पेशल २६  आदि फिल्मों में तो उन्होंने दर्शकों को हँसाया लेकिन संजय लीला भंसाली की फिल्म "देवदास " में उन्होंने धर्मदास का किरदार अभिनीत करके दर्शकों को अचम्भित कर दिया।

फिल्मों में तो उन्होंने सभी तरह का अभिनय किया लेकिन टी वी पर उन्होने विशेष रूप से हास्य अभिनय ही किया। उन्होंने १९८४ में सबसे पहले कुंदन शाह के साथ काम किया "ये जो है जिंदगी " में।  दूरदर्शन पर प्रसारित इस धारावाहिक के जरिये उन्होंने देश के सभी दर्शको के दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाई। इसके बाद श्रीकांत ( १९८७ ) दुनिया गज़ब की (१९९२  ) आनंद (१९९३  ) कभी ये कभी वो (१९९४ --९५ ) जमाना बदल गया , एक से बढ़कर एक ( १९९५ ) माल है तो ताल है (२०००  ) हम सब बाराती ( २००४ ) सजन रे झूठ मत बोलो (२००९ -११ ) ये चंदा कानून है ( २००९ ) गोलमाल है भाई सब गोलमाल है ( २०१२) प्रीतम प्यारे और वो ( २०१४ ) सजन रे फिर झूठ मत बोलो ( २०१७ ) आदि धारावाहिको में अभिनय किया है।  



टीकू ने थियेटर की अपनी को-आर्टिस्ट दीप्ति से शादी की । उनके दो बच्चे हैं रोहन और शिखा तलसानिया। शिखा भी एक्टर हैं उनकी कई फीचर फ़िल्में, शॉर्ट फिल्में हुए वेब सीरीज आ चुकी हैं। 

Tuesday, December 8, 2020

अँगूरी भाभी के पति मनमोहन तिवारी यानि रोहिताश गौड़

 लोकप्रिय हास्य धारावाहिक "भाभी जी घर पर हैं " में अँगूरी भाभी के पति मनमोहन तिवारी यानि 
रोहिताश गौड़ ने अपनी अदाकारी से दर्शकों के बीच अपनी एक अलग जगह बनाई  है। हरियाणा के कालका के रहने वाले रोहिताश को बचपन से भी अभिनय का जूनून सवार था। रोहिताश के पिता इनको साइंस पढ़ाना चाहते थे लेकिन साइंस पढ़ने में इनकी दिलचस्पी बिलकुल भी नहीं थी। इसी वजह से ११ क्लास में फेल भी हो गये।  फिर फिजिक्स के टीचर के कहने पर इनके पिता ने इन्हें आर्ट्स में एडमिशन दिलाया जहाँ रोहिताश ने टॉप किया। रोहिताश गौड ने अपनी शुरूआती शिक्षा सरकारी उच्च विद्यालय, कालका, हरियाणा से ली। उसके बाद इन्होंने सरकारी महाविद्यालय, कालका, हरियाणा और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा, नई दिल्ली से कला में स्नातक और नाटक में डिग्री ली। 

यूँ तो रोहिताश के दो किरदार मुकुन्दीलाल गुप्ता (लापतागंज ) मनमोहन तिवारी ( भाभी जी घर पर हैं ) दर्शकों में बहुत लोकप्रिय हुए हैं लेकिन इन धारावाहिकों से पहले उन्होंने अनेकों लोकप्रिय धारावाहिकों में अभिनय किया है।सबसे पहले उन्होंने १९९१ में "नीम का पेड़" में अभिनय किया। इसके बाद १९९७ में जय हनुमान १९९९ में अग्निचक्र २००१ में परसाईं कहते हैं २००२ में वेद व्यास के पोते और महारथी कर्ण २००४ में नोडी और डैडी और  श्री सिफारिशी लाल २००५ में चमचा इन चीफ और हरि मिर्ची लाल मिर्ची २००६ में साराभाई वर्सेज साराभाई और एक चाबी है पड़ोस में २००८ में अस्तित्व एक पहचान और जसुबेन जयंतीलाल जोशी की जॉइंट फॅमिली २००९ में लापतागंज  २०१३ में हम आपके हैं  इनलॉज  २०१४ में खुशियों की गुल्लक आशी २०१५ में भाभी जी घर पर हैं आदि  

एक दिन की शूटिंग के करीब ५० -६० हज़ार रूपये लेने वाले रोहिताश आज जिस हास्य धारावाहिक "भाभी जी घर पर हैं " की वजह से घर -- घर में कच्छे बेचने वाले मनमोहन तिवारी के नाम से लोकप्रिय हैं। जब उन्हें इस धारावाहिक में अभिनय करने के लिए मशहूर स्क्रिप्ट राइटर मनोज संतोषी ने कहा तो पहले रोहिताश ने मना कर दिया। बाद में उनकी पत्नी रेखा के कहने पर उन्होंने इस भूमिका को करना मंजूर किया और आज हम सभी जानते हैं कि यह सीरियल और उनकी भूमिका कितनी लोकप्रिय है। इसी तरह शरद जोशी की कहानियों पर आधारित - धारावाहिक "लापतागंज " को भी दर्शकों ने बहुत पसंद किया था साथ में इस धारावाहिक में निभाये गये किरदार मुकुन्दीलाल गुप्ता को भी। इस किरदार को भी रोहिताश ने बहुत ही ख़ूबसूरती से अभिनीत किया था। 

अमिताभ बच्चन के प्रशंसक रोहिताश ने अनेकों फिल्मों में भी अभिनय किया है। उनकी फ़िल्में इस प्रकार हैं -- २००१ -- फिल्म वीर सावरकर ,२००२ -- प्रथा, २००३ -- मातृभूमि , पिंज़र , धूप , मुन्ना भाई एम बी बी एस , २००६  लगे रहो मुन्ना भाई , दिल से पूछ किधर जाना है ,२००८ - ए वेडनेस डे ,वन टू थ्री, २००९ में थ्री ईडियट्स , २०१० -- अतिथि तुम कब जाओगे २०१४ में पी के आदि।  

हालाँकि आज रोहिताश एक बड़ा नाम है।  उनके पास वो सब कुछ है जिसकी इच्छा हर इंसान करता है यानि घर, गाड़ी और पैसा। लेकिन इस मुकाम पर पँहुचने के लिए उन्हें भी काफी संघर्ष करना पड़ा है। एक समय था जब वो दिल्ली से मुंबई आये थे अभिनेता बनने के लिये। मुंबई में वो ५-६ लोगों के साथ एक ही कमरे में रहते थे और मकान मालकिन के बेटे के जन्मदिन मनाने की वजह से कमरा खाली करना पड़ा और सारी रात खुली छत में बितानी पड़ी। हवाई जहाज की आवाजों के कारण सारी रात सो नहीं सके।  बाद में थोड़ी देर नींद आयी और जब आँख खुली तो पूरे भीग चुके थे क्योंकि पानी की टंकी रिस रही थी। ज्यादा देर पीठ भीगने की वजह से जाम हो गयी थी। उनकी बिमारी की वजह से डॉ ने उन्हें तुरंत मुंबई छोड़ने के लिए कहा। कुछ दिन दिल्ली जाकर अपना इलाज करवा कर रोहिताश अपने सपनों को पूरा करने के लिये पुन : मुंबई आ गये। 

"भाभी जी घर पर हैं"  धारावाहिक में  अनीता भाभी के दीवाने बने मनमोहन तिवारी यानि रोहिताश के परिवार में उनकी पत्नी रेखा हैं जो कि कैंसर रिसर्च का काम करती है।  इनके अलावा इनकी दो बेटियाँ हैं गीति और संगीति। लॉक डाउन में एक वीडियो भी काफी लोकप्रिय हुआ जिसमें उनकी बेटी गीति उन्हें "काला चश्मा"  गीत में डाँस करना सिखा रही है। 

मंत्र मुग्ध कर देने वाली आवाज़ के धनी अमीन सयानी की यादें

91 साल की उम्र में अमीन सयानी जी का निधन हो गया। उनको हम देश का पहला आर जे भी कह सकते हैं। रेडियो सिलोन में गीतों का कार्यक्रम ब...