
जब भी दो बड़ी फ़िल्में एक साथ रिलीज़ होती हैं इस तरह का विवाद होता ही है। सब निर्माता निर्देशक जैसी तैसी फ़िल्में बना कर अपना सेफ गेम खेलना चाहते हैं यानि कुछ भी कूड़ा कचरा बना दो बस एक ही फिल्म रिलीज़ करों जिससे दर्शकों को अवसर न मिले अपनी पसन्द की फिल्म देखने का और वो न चाहते हुए कचरा देखने को मजबूर हो जाये।
अगर हमेशा ऐसी दो बड़ी फ़िल्में एक साथ रिलीज़ हो तो दर्शको के लिए बहुत अच्छा होगा उन्हें बेहतर फिल्में देखने का अवसर मिलेगा और निर्माता निर्देशक भी अच्छी फ़िल्में बनाने की कोशिश करेगें कुछ भी बक़वास बना कर १०० करोड़ की श्रेणी में नही पंहुचेंगे। और वैसे भी सबको पता है जो अच्छा होता है वही बिकता है चाहे कितने भी हथकंडे अपनाले पी आर और मार्केटिंग टीम.
कितना अच्छा हो बिना किसी तक़रार के , एक दूसरे पर आरोप लगाने के अच्छी फ़िल्में बनायें और स्वस्थ प्रतियोगिता अपनायें निर्माता निर्देशक और कलाकार. सबको पता है बहुत मेहनत और रूपये से फ़िल्में बनती हैं कितने लोगों के भविष्य जुड़े होते हैं एक फिल्म से। लेकिन दर्शकों के रुपयों की कीमत भी समझना जरुरी है।
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