उत्तम वाज्ञेयकार - इस शब्द से हमारा परिचय करवाया हमारे पूज्य गुरूजी, आचार्य जियालाल वसन्त ने - यूं ही, बातों-बातों में, बिना किसी शब्द अथवा वाक्य पर ज़ोर दिए । भले ही विद्यार्थी गायन, वादन अथवा नृत्य का रह हो । मानों हमें संगीत के क्षेत्र में पदारपण करने की तैयारी करवा रहे हों । प्रत्येक क्षेत्र में, जो अनिवार्य हों, वे नियम, हिदायतें व अडिग मापदंडों को दर्शाते । कभी स्वयं गा-बजा कर, कंभी रिकार्ड की हुई टेप के माध्यम से, तो कभी किसी संगीत सभा में ले जाकर संगीत मार्तण्डों के गायन, वादन तथा नृत्य दिखा कर । इस प्रकार हम 'वाज्ञेयकार' से परिचित होते रहे ।
यह सब कहने या लिखने वाले का नाम 'शारंगदेव' है, यह बात हमें बहुत बाद में बताई गई । उनके ग्रंथ 'संगीत रत्नाकर' के 'दर्शन' करवाए गए तथा सभी ८ श्लोकों का सविस्तार वर्णन गुरूजी द्वारा सोदहरण दिया गया । हर बार एक बात सदा दोहराते कि तुम तब तक पूर्ण संगीतज्ञ नहीं बन सकते, जब तक तम तीनों कलाओं में अपनी परांगतता श्रोतागण पर सिद्ध न कर सकें । इसका अर्थ कदापि नहीं कि गाने वाले अथवा वादकों को उठ कर नाचना पड़ेगा!!!!! अथवा नर्तक को कोईँ वाद्य बजाकर दिखाना होगा ! यह सब तो आप की प्रस्तुति से दर्शक को ज्ञात हो ही जाएगा ।
धीरे-धीरे हम अब पूर्णतया समझने लगे थे कि शारंगदेव द्वारा रचित ग्रंथ 'संगीत रत्नाकर' के उत्तम वाज्ञेयकार हमारे अपने गुरुजी, आचार्य जियालाल वसंत ही हैं ।
सन् २००१ में आदरणीय संगीत मार्तण्ड पद्मविभूषण प. जसराज जी को 'उत्तम वाज्ञेयकार जियालाल वसंत पुरस्कार' से सम्मानित किया गया ।
अब हमारा पुरस्कार अपने १६वें वर्ष में पदारपण कर रहा है । हम स्वयं को अत्यन्त भाग्यशाली मानते हैं कि इस पुरस्कार को स्वीकार करते हुए सभी गुणीजनों ने हमें व हमारे निर्णय को आशीर्वाद दिया है, साथ ही इस पुरस्कार को भी सम्मानित किया है
2001 - संगीत मार्तण्ड पंडित जसराज।
2002 - पंडित शिवकुमार शर्मा।
2003 - पंडित बालमूर्ति कृष्णन।
2004 - पंडित भीमसेन जोशी।
2005 - पंडित रामनारायण।
2006 - पंडित हरिप्रसाद चौरसिया।
2007 - लता मंगेशकर।
2008 - सांसद एक्ट्रेस हेमा मालिनी।
2009 - उस्ताद ज़ाकिर हुसैन।
2010 - पंडित विश्वमोहन भट्ट।
2011 - डॉक्टर एल सुब्रमनियम।
2012 - पंडित अजोय चक्रबोर्ती।
2013 - उस्ताद अमजद अली खान।
2014 - उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान।
2015 - पद्मभूषण आशा भोसले।