Tuesday, December 29, 2020

फिल्म "मि इंडिया " के कैलेंडर यानि सतीश कौशिक


 अभिनेता सतीश कौशिक को दर्शक आज भी सबसे ज्यादा फिल्म "मि इंडिया " के कैलेंडर के नाम से जानते हैं।  हालाँकि उन्होंने अनेकों फिल्मों में शानदार अभिनय किया है।  ६४ साल के इस अभिनेता ने फिल्मों , टी वी और थियेटर सभी जगह खूब काम किया है।  बतौर अभिनेता तो उन्होंने अपनी जगह बनाई ही है साथ में एक लेखक और निर्देशक के रूप में भी उन्होंने बहुत काम किया है। १९८९  में फिल्म "राम लखन " और १९९६  में फिल्म "साजन चले ससुराल " इन दो फिल्मों के लिए सतीश को सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिल चुका है। ७ जनवरी को ओ टी टी प्लेटफॉर्म और सिनेमा घरों ,दोनों जगह उनकी फिल्म "कागज " रिलीज़ होने वाली है।  एक लेखक , निर्देशक और एक अभिनेता , तीनों ही रूपों में सतीश इस फिल्म से जुड़े हुए हैं। 

  
१३ अप्रैल १९५६,महेंद्रगढ़ में जन्में सतीश ने  दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और यही से उन्हें नाटक देखने और उसमें अभिनय का रुझान हुआ। इसके लिये उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिला ले लिया। दिल्ली से ८०० रुपये लेकर मुंबई चले सतीश ने हिंदी फिल्मों में अपना एक अलग मुकाम बनाया है। सतीश कौशिक ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर सहायक फिल्म "मासूम" से की । कैसे उन्हें निर्देशक शेखर कपूर के सहायक का  काम मिला। इसके बारें में उन्होंने एक रोचक किस्सा बताया कि , " स्व अभिनेता शम्मी कपूर जी का एक बॉय था। डबिंग स्टूडियो में कई बार मिलते हुए मेरी उससे दोस्ती हो गयी थी। उसने मुझे शेखर कपूर के बारें में बताया कि ,"शेखर को एक सहायक के जरूरत है। उसी ने मुझे शेखर कपूर का नंबर भी दिया। मैं शेखर से मिला भी अपने काम के लिए। लेकिन बाद में पता चला कि किसी राज कुमार संतोषी को उन्होंने अपने सहायक रख लिया है, मैं बहुत निराश हुआ लेकिन कुछ दिनों बाद शेखर का मुझे फोन आया कि अगर तुम मेरे साथ काम करना चाहते हो,तो आ जाना। बस क्या था मैं शेखर कपूर से जुड़ गया।  उनके साथ मेरी पहली फिल्म थी "मासूम। " इसमें मैंने बतौर सहायक और एक अभिनेता दोनों रूपों में  काम किया।"     

जहाँ तक हम उनकी हास्य फिल्मों की बात करें तो सबसे पहला नाम आता है क्लासिक फिल्म "जाने भी दो यारों"  (१९८३ ) का। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया और इसके संवाद भी लिखे रंजीत कपूर के साथ मिलकर। इस फिल्म में वो भ्र्ष्ट कांट्रेक्टर के सहायक बने थे। इसके बाद उनकी फिल्म आयी "मिस्टर इंडिया " जिसने उनकी जिंदगी ही पूरी तरह से बदल दी। इस फिल्म के दो किरदार आज भी दर्शकों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं एक है मोंगैंबो का और दूसरा है कैलेंडर का। कैलेंडर बन कर पतले सतीश ने दर्शकों को बेहद लुभाया। इसके बाद आयी १९८९ की लोकप्रिय फिल्म "राम लखन। " निर्देशक सुभाष घई की इस मल्टी स्टारर फिल्म में वो अनुपम खेर के नौकर की भूमिका में थे।  नौकर बन कर भी सतीश ने दर्शकों को बहुत हँसाया। इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला था। इसके बाद फिल्म "साजन चले ससुराल " ( १९९६ ) में उन्होंने मुतु स्वामी के किरदार में एक बार फिर दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया और फिर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का अवार्ड हासिल किया। १९९७ में आयी फिल्म "दीवाना मस्ताना  " उन्होंने पप्पू पेजर बनकर दर्शकों को हँसाया। ये दोनों ही फ़िल्में निर्देशक डेविड धवन की हैं। सन २००२ में आयी डेविड धवन की फिल्म "हम किसी से कम नहीं" इस फिल्म में भी उन्होंने फिर पप्पू पेजर बनकर दर्शकों की वाहवाही लूटी। फिल्म "बड़े मियाँ छोटे मियाँ ,परदेसी बाबू ,राजा जी, हसीना मान जायेगी , दुल्हन हम ले जायेगें , हद कर दी आपने , डू नॉट डिस्टर्ब , डबल धमाल , छलाँग आदि फिल्मों में हास्य अभिनय करके दर्शकों का आज तक मनोरंजन किया है सतीश कौशिक ने। 

 ऐसा नहीं है उन्होंने केवल हिंदी फ़िल्में की की । उन्होंने २००७ में  ब्रिटिश निर्देशक साराह गेवरॉन की फिल्म " ब्रिक लेन " में भी अभिनय किया है। इस फिल्म में उन्होंने चानू अहमद का किरदार अभिनीत किया था। अपने किरदार को सशक्त बनाने के लिये उन्होंने वर्क शॉप्स ली और साथ में अंग्रेजी की क्लासेज भी ली। एक  बांग्ला देसी लड़की की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म में उनके साथ तनिष्ठा चटर्जी भी थीं।  अच्छी भूमिका थी सतीश की लेकिन फिल्म सफल नहीं हुई। अपनी इस फिल्म के लिए सतीश को बहुत अफ़सोस है कि इस फिल्म को दर्शकों ने देखा तक नहीं। 

सतीश ने अभिनय ही नहीं किया बल्कि उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया। हालाँकि उनकी निर्देशित अधिकतर फ़िल्में असफल ही रही हैं। उनकी पहली निर्देशित फिल्म थी १९९३ की सबसे मँहगी और असफल फिल्म "रूप की रानी चोरों का राजा। " अनिल कपूर और श्री देवी की जोड़ी भी इस फिल्म को नहीं बचा पायी। इसके बाद आयी १९९५ में "प्रेम " संजय कपूर और तब्बू की पहली फिल्म। यह भी औंधे मुँह जा गिरी। १९९६ में आयी फिल्म " मिस्टर बेचारा " के निर्माता थे सतीश। यह फिल्म भी बेचारी ही साबित हुई। १९९९ में आयी "हम आपके दिल में रहते हैं " इसे भी कुछ ज्यादा सफलता  नहीं मिली। २००० में हमारा दिल आपके पास है ,२००१ में मुझे कुछ कहना है दोनों ही फ़िल्में सफल रहीं। २००२ में आयी "बधाई हो बधाई " भी असफल फिल्म रही। २००३ में आयी फिल्म " तेरे नाम " सलमान खान और भूमिका चावला की इस फिल्म ने सफलता के परचम लहरा दिये। वादा (२००५ ) शादी से पहले (२००६ ) कर्ज  (२००८ ) तेरे संग ( २००९ ) मिलेगें मिलेगें ( २०१० ) गैंग ऑफ़ घोस्ट (२०१० ) यह सभी फ़िल्में असफल रहीं। अब दर्शकों को उनकी आने वाली फिल्म "कागज़ " का इंतज़ार है।  इस फिल्म में अभिनेता पंकज त्रिपाठी मुख्य भूमिका में हैं। सुनने में यह भी आ रहा है कि सतीश लोकप्रिय फिल्म "तेरे नाम " का सीक्वेल भी बना रहे हैं। 
सतीश के परिवार में उनकी पत्नी शशि कौशिक और बेटी वंशिका कौशिक और बेटा शानू कौशिक हैं। 

Tuesday, December 15, 2020

टीकू तलसानिया को  शूटिंग , पैराग्लाइडिंग और फोटोग्राफ़ी का भी शौक है

 टी वी और फिल्मों में आने से पहले अभिनेता टीकू तलसानिया गुजराती थियेटर से जुड़े हुए थे। वहीँ उनके अभिनय से प्रभावित होकर निर्देशक कुंदन शाह ने उन्हें टी वी के लोकप्रिय हास्य धारावाहिक "ये जो है जिंदगी " ( १९८४ ) में काम करने का मौका दिया। इस धारावाहिक में अभिनय करके टीकू तो रातो रात दर्शकों में लोकप्रिय हुए ही साथ में उनका संवाद " ये क्या हो रहा है " भी बहुत लोकप्रिय हुआ। 




 ४० सालों से ज्यादा अभिनय से जुड़े  टीकू के घर में जहाँ अधिकतर डॉ ही हैं वहीं टीकू की दिलचस्पी अभिनय की ओर थी। बचपन से ही वो अभिनेता बनना चाहते थे , वो स्कूल में होने वाले नाटकों में हिस्सा लेते रहते थे। बाद में वो प्रवीण जोशी के थियेटर ग्रुप से जुड़ गये। टीकू पूरी तरह से अभिनय के रंग में रंग चुके थे जबकि उनके पिता चाहते थे कि वो डॉ ही बने लेकिन उनकी माँ का उन्हें पूरा सपोर्ट था। इस बारे में टीकू का कहना है कि , "  जब मैंने अभिनय करने का सोचा उस समय फिल्मों में काम करने वाले को सम्मान से नहीं देखा जाता था। यह वजह थी कि पापा नहीं चाहते थे कि मैं इस क्षेत्र में जाऊँ। "

टीकू ने निर्देशक कुंदन शाह के साथ टी वी में ही नहीं बल्कि फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने उनके साथ लोकप्रिय हास्य फिल्म "जाने भी दो यारों " के अलावा कभी हाँ कभी ना , क्या कहना और दिल है तुम्हारा आदि फिल्मों में भी काम किया। जब कभी उन्हें टी वी और फिल्मों से फुरसत मिलती है तो वो अमेरिका और यूरोप के कई नाटकों में भी हिस्सा लेते हैं।  साथ ही टीकू खुद को एक ट्रेवलर मानते हैं। अपने खाली वक्त में वो अपनी बाइक से अलग - अलग शहरों की यात्रायें भी कर चुके हैं। बाइक से वो लद्दाख भी जा चुके हैं। इसके अलावा उन्हें शूटिंग , पैराग्लाइडिंग और फोटोग्राफ़ी का भी शौक है। 
 
टीकू का जन्म ७ जून १९५४ को मुंबई  में हुआ। उन्होंने मुंबई विश्व विद्यालय से स्नातक  पढ़ाई की है। दिल्ली के बारें में बात करते हुए ,"टीकू कहते हैं कि उन्हें दिल्ली के छोले - भटूरे  और कबाब बहुत पसंद हैं लेकिन यहाँ गर्मी बहुत पड़ती है। मैंने यहां मई के महीने में भी शूटिंग की है।  ऐसी भरी गर्मी में काम का अनुभव आज भी मुझे याद है।"   

सही मायने में फिल्मों में टीकू के अभिनय की शुरुआत १९८६ में निर्देशक राजीव मेहरा की फिल्म "प्यार के दो पल " से हुई थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक करके वो अनेकों फिल्मों में काम करते गये और अपने हास्य अभिनय से दर्शकों को हँसाते गये। यूँ तो टीकू ने २०० फिल्मों में काम किया है।लेकिन उनकी कुछ फ़िल्में ऐसी हैं जिन्हें आज भी दर्शक बार - बार देखना पसंद करते हैं इन सभी फिल्मों में उनका अभिनय भी लाजवाब था। दिल है कि मानता नहीं , कभी हाँ कभी ना ,अंदाज़ अपना अपना , दरार ,राजा , बोल राधा बोल ,मिस्टर बेचारा  ,राजा हिन्दुस्तानी ,इश्क़ , जुड़वाँ ,हीरो नंबर १ , डुप्लीकेट ,प्यार तो होना ही था , जल्लाद , सुहाग ,फिर हेरा फेरी , हँगामा , धमाल ,ढोल , पार्टनर ,वन्स अपॉन ए टाइम मुंबई दोबारा ,स्पेशल २६  आदि फिल्मों में तो उन्होंने दर्शकों को हँसाया लेकिन संजय लीला भंसाली की फिल्म "देवदास " में उन्होंने धर्मदास का किरदार अभिनीत करके दर्शकों को अचम्भित कर दिया।

फिल्मों में तो उन्होंने सभी तरह का अभिनय किया लेकिन टी वी पर उन्होने विशेष रूप से हास्य अभिनय ही किया। उन्होंने १९८४ में सबसे पहले कुंदन शाह के साथ काम किया "ये जो है जिंदगी " में।  दूरदर्शन पर प्रसारित इस धारावाहिक के जरिये उन्होंने देश के सभी दर्शको के दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाई। इसके बाद श्रीकांत ( १९८७ ) दुनिया गज़ब की (१९९२  ) आनंद (१९९३  ) कभी ये कभी वो (१९९४ --९५ ) जमाना बदल गया , एक से बढ़कर एक ( १९९५ ) माल है तो ताल है (२०००  ) हम सब बाराती ( २००४ ) सजन रे झूठ मत बोलो (२००९ -११ ) ये चंदा कानून है ( २००९ ) गोलमाल है भाई सब गोलमाल है ( २०१२) प्रीतम प्यारे और वो ( २०१४ ) सजन रे फिर झूठ मत बोलो ( २०१७ ) आदि धारावाहिको में अभिनय किया है।  



टीकू ने थियेटर की अपनी को-आर्टिस्ट दीप्ति से शादी की । उनके दो बच्चे हैं रोहन और शिखा तलसानिया। शिखा भी एक्टर हैं उनकी कई फीचर फ़िल्में, शॉर्ट फिल्में हुए वेब सीरीज आ चुकी हैं। 

Tuesday, December 8, 2020

अँगूरी भाभी के पति मनमोहन तिवारी यानि रोहिताश गौड़

 लोकप्रिय हास्य धारावाहिक "भाभी जी घर पर हैं " में अँगूरी भाभी के पति मनमोहन तिवारी यानि 
रोहिताश गौड़ ने अपनी अदाकारी से दर्शकों के बीच अपनी एक अलग जगह बनाई  है। हरियाणा के कालका के रहने वाले रोहिताश को बचपन से भी अभिनय का जूनून सवार था। रोहिताश के पिता इनको साइंस पढ़ाना चाहते थे लेकिन साइंस पढ़ने में इनकी दिलचस्पी बिलकुल भी नहीं थी। इसी वजह से ११ क्लास में फेल भी हो गये।  फिर फिजिक्स के टीचर के कहने पर इनके पिता ने इन्हें आर्ट्स में एडमिशन दिलाया जहाँ रोहिताश ने टॉप किया। रोहिताश गौड ने अपनी शुरूआती शिक्षा सरकारी उच्च विद्यालय, कालका, हरियाणा से ली। उसके बाद इन्होंने सरकारी महाविद्यालय, कालका, हरियाणा और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा, नई दिल्ली से कला में स्नातक और नाटक में डिग्री ली। 

यूँ तो रोहिताश के दो किरदार मुकुन्दीलाल गुप्ता (लापतागंज ) मनमोहन तिवारी ( भाभी जी घर पर हैं ) दर्शकों में बहुत लोकप्रिय हुए हैं लेकिन इन धारावाहिकों से पहले उन्होंने अनेकों लोकप्रिय धारावाहिकों में अभिनय किया है।सबसे पहले उन्होंने १९९१ में "नीम का पेड़" में अभिनय किया। इसके बाद १९९७ में जय हनुमान १९९९ में अग्निचक्र २००१ में परसाईं कहते हैं २००२ में वेद व्यास के पोते और महारथी कर्ण २००४ में नोडी और डैडी और  श्री सिफारिशी लाल २००५ में चमचा इन चीफ और हरि मिर्ची लाल मिर्ची २००६ में साराभाई वर्सेज साराभाई और एक चाबी है पड़ोस में २००८ में अस्तित्व एक पहचान और जसुबेन जयंतीलाल जोशी की जॉइंट फॅमिली २००९ में लापतागंज  २०१३ में हम आपके हैं  इनलॉज  २०१४ में खुशियों की गुल्लक आशी २०१५ में भाभी जी घर पर हैं आदि  

एक दिन की शूटिंग के करीब ५० -६० हज़ार रूपये लेने वाले रोहिताश आज जिस हास्य धारावाहिक "भाभी जी घर पर हैं " की वजह से घर -- घर में कच्छे बेचने वाले मनमोहन तिवारी के नाम से लोकप्रिय हैं। जब उन्हें इस धारावाहिक में अभिनय करने के लिए मशहूर स्क्रिप्ट राइटर मनोज संतोषी ने कहा तो पहले रोहिताश ने मना कर दिया। बाद में उनकी पत्नी रेखा के कहने पर उन्होंने इस भूमिका को करना मंजूर किया और आज हम सभी जानते हैं कि यह सीरियल और उनकी भूमिका कितनी लोकप्रिय है। इसी तरह शरद जोशी की कहानियों पर आधारित - धारावाहिक "लापतागंज " को भी दर्शकों ने बहुत पसंद किया था साथ में इस धारावाहिक में निभाये गये किरदार मुकुन्दीलाल गुप्ता को भी। इस किरदार को भी रोहिताश ने बहुत ही ख़ूबसूरती से अभिनीत किया था। 

अमिताभ बच्चन के प्रशंसक रोहिताश ने अनेकों फिल्मों में भी अभिनय किया है। उनकी फ़िल्में इस प्रकार हैं -- २००१ -- फिल्म वीर सावरकर ,२००२ -- प्रथा, २००३ -- मातृभूमि , पिंज़र , धूप , मुन्ना भाई एम बी बी एस , २००६  लगे रहो मुन्ना भाई , दिल से पूछ किधर जाना है ,२००८ - ए वेडनेस डे ,वन टू थ्री, २००९ में थ्री ईडियट्स , २०१० -- अतिथि तुम कब जाओगे २०१४ में पी के आदि।  

हालाँकि आज रोहिताश एक बड़ा नाम है।  उनके पास वो सब कुछ है जिसकी इच्छा हर इंसान करता है यानि घर, गाड़ी और पैसा। लेकिन इस मुकाम पर पँहुचने के लिए उन्हें भी काफी संघर्ष करना पड़ा है। एक समय था जब वो दिल्ली से मुंबई आये थे अभिनेता बनने के लिये। मुंबई में वो ५-६ लोगों के साथ एक ही कमरे में रहते थे और मकान मालकिन के बेटे के जन्मदिन मनाने की वजह से कमरा खाली करना पड़ा और सारी रात खुली छत में बितानी पड़ी। हवाई जहाज की आवाजों के कारण सारी रात सो नहीं सके।  बाद में थोड़ी देर नींद आयी और जब आँख खुली तो पूरे भीग चुके थे क्योंकि पानी की टंकी रिस रही थी। ज्यादा देर पीठ भीगने की वजह से जाम हो गयी थी। उनकी बिमारी की वजह से डॉ ने उन्हें तुरंत मुंबई छोड़ने के लिए कहा। कुछ दिन दिल्ली जाकर अपना इलाज करवा कर रोहिताश अपने सपनों को पूरा करने के लिये पुन : मुंबई आ गये। 

"भाभी जी घर पर हैं"  धारावाहिक में  अनीता भाभी के दीवाने बने मनमोहन तिवारी यानि रोहिताश के परिवार में उनकी पत्नी रेखा हैं जो कि कैंसर रिसर्च का काम करती है।  इनके अलावा इनकी दो बेटियाँ हैं गीति और संगीति। लॉक डाउन में एक वीडियो भी काफी लोकप्रिय हुआ जिसमें उनकी बेटी गीति उन्हें "काला चश्मा"  गीत में डाँस करना सिखा रही है। 

Sunday, October 25, 2020

चंडीगढ़ करें आशिकी

"चंडीगढ़ करे आशिकी" यह नाम है अभिषेक कपूर की आने वाली फ़िल्म का। आधुनिक प्रेम कहानी पर आधारित इस फ़िल्म में प्रेम जोड़ी है आयुष्मान खुराना और वाणी कपूर की। फिल्म के निर्माता हैं टी सीरीज़ के भूषण कुमार एयर गाय इन द स्काई पिक्चर्स प्रोडक्शन की प्रज्ञा कपूर।

भाजपा) के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में प्रवेश

मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  के प्रमुख शरद पवार की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में प्रवेश हुआ इस मौजूदगी में (एनसीपी) सभी वरिष्ठ नेता प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, सांसद प्रिया सुले, खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल, गृह मंत्री अनिल देशमुख, सुनील तटकरे, दिलीप वालसे पाटिल,अरुण गुजराती, डॉ राजेंद्र शिंगाने ,डॉ जितेंद्र आव्हाड इस अवसर पर आदि नेता राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी कार्यालय उपस्थित थे
फोटो- राकेश लोंढे.   

पहली डिजिटल जिंगल गायन प्रतियोगिताविजेता को 2 लाख रुपये का इनाम कैलाश खेर के साथ वीडियो में गाने का मौका



कोविड 19 ने दुनियां भर को हैरान परेशान कर रखा है लेकिन ऐसी विषम परिस्थितियों में भी कुछ नया करने का जुनून बाकी है इसी कड़ी में नॉरिश ने ईजाद की है पहली डिजिटल जिंगल गाने या बजाने की प्रतियोगिता। विजेता को मिलेगा 2 लाख रुपये का ईनाम, नॉरिश गिफ्ट हैम्पर साथ ही पदमश्री गायक कैलाश खेर के साथ गाने और विडियो में दिखने का मौका। प्रतियोगिता में निशुल्क भाग ले सकते है।

इस प्रतियोगिता को तीन भागों में बांटा गया है पहले भाग में 6 से 10 वर्ष, दूसरे भाग में 11 से 14 वर्ष और तीसरे भाग में 15 से 18 वर्ष उम्र के प्रतियोगी भाग ले सकते है।

प्रतियोगिता के अनुसार कैलाश खेर द्वारा गाये न्यूट्रिशन की सरगम गाने को प्रतिभागियों को अपनी आवाज में गाना है या  वाद्य यंत्रों से भी सुर दिये जा सकते है । प्रतिभागियों को अपने गाने या वाद्य यंत्र पर बजाए गाने का वीडियो प्रतियोगिता में शामिल करने के लिए ऑनलाइन भेजना होगा।

प्रतिभागी इस एंथम गीत को नॉरिश की वेबसाइट www.nourishstore.co.in या सोशल मीडिया चैनल के साथ कैलाश खेर के सोशल मीडिया चैनल पर भी पा सकते है। 

प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए प्रतिभागियों को इवेन्ट माइक्रोसाइट पर रजिस्टर करना होगा और अपना वीडियो भी इसी माइक्रोसाइट पर पोस्ट करना होगा।

प्रतियोगिता में शामिल प्रत्येक एंट्री को संगीत विशेषज्ञों की टीम सुनेगी और प्रत्येक भाग से सर्वश्रेष्ठ 30 प्रतिभागियों का चुनाव करेगी। सभी चुने हुए प्रतिभागी अगले राउंड जिसे बैटल राउंड नाम दिया गया है में शामिल होकर ज़ूम जैसे प्लेटफार्म पर लाइव परफॉर्म करेंगे। इस राउंड में दर्शक भी अपने चहेते गायक को वोट दे सकते है। 

90 प्रतिभागियों को 8 चरणों मे भाग लेने के बाद सर्वश्रेष्ठ 9 प्रतिभागी चुने जायेंगे। इन चुने हुए 9 प्रतिभाशाली गायकों में से प्रत्येक भाग के सर्वश्रेष्ठ गायक की घोषणा कैलाश खेर फेसबुक लाइव इवेंट में करेंगे और चुने हुए तीन गायको को अपने साथ वीडियो में गाने का निमंत्रण भी देंगे।

नॉरिश के कार्यकारी निदेशक आशीष खण्डेलवाल का कहना है  नॉरिश बच्चों को स्वस्थ रखने के साथ ही प्रतिभाशाली बच्चों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका भी मिलता रहे ऐसा हमारा सोचना है । हम भविष्य में भी ऐसी प्रतियोगिता करते रहेंगे।

कैलाश खेर ने इस मौके पर कहा मैं नॉरिश और आशीष जी को इस संगीत प्रतियोगिता के लिए बधाई देता हूँ और धन्यवाद देता हूँ कि मुझे प्रतिभाशाली गायको को सुनने चुनने का मौका दिया। मुझे उम्मीद है इस प्रतियोगिता में बच्चे और युवा गायक बड़ी संख्या में शामिल होकर अपनी प्रतिभा निखारेंगे

Tuesday, October 13, 2020

हँसता मुस्कुराता चेहरा टुनटुन

हास्य अभिनेत्री टुनटुन का नाम आते ही हम सभी के चेहरों पर एक मुस्कान सी आ जाती है। टुनटुन जब भी परदे पर नज़र आती थी दर्शक गुदगुदाये बिना नहीं रहते थे। टुनटुन का असली नाम उमा देवी खत्री था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के अलीपुर गाँव में ११ जुलाई १९२३ को हुआ था। जब वो दो - ढाई बरस की थी तभी उनके माता - पिता गुज़र गये थे।  टुनटुन का एक भाई था जो उनसे आठ - नौ बरस बड़ा था , उसका नाम हरी था वो भी जब टुनटुन तीन - चार बरस की रही होंगी वो भी गुज़र गया। ऐसे में उनके चाचा ने उनकी परवरिश की। 

बचपन में रेडियो सुन - सुन कर उमा को गाने का शौक हो गया। उनकी दिली तमन्ना थी कि वो फिल्मों में गीतों को गाये। लेकिन उस दौर में लड़कियों को फिल्मों में गायिका बनना तो दूर उनकी पढ़ाई होना तक मुश्किल था। ऐसे में किसी तरह वो मुंबई आ गयी और सीधे वो संगीतकार नौशाद से मिली और उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वो उन्हें फिल्म में गाने का मौका दें । नौशाद के सामने वो जिद पर अड़ गईं कि अगर उन्हें गाने का मौका नहीं मिला, तो वो समुद्र में कूद जायेंगी। नौशाद साहब ने टुनटुन का छोटा सा ऑडिशन लिया और उनकी आवाज से प्रभावित होकर उन्हें तुरंत काम दे दिया।इस तरह उन्होंने पहला गाना गाया नाज़िर की फिल्म "वामिक अज़रा " ( १९४६ ) में। इसके बाद उन्हें गाना " अफसाना लिख रही हूँ दिल बेक़रार का " ( दर्द - १९४७ ) मिला जिस गाने को आज भी श्रोता सुनना पसंद करते हैं। इस गीत के बाद टुनटुन की तो जैसे लॉटरी निकल गई। उन्होंने एक - एक करके करीब ५० गीतों को गाया। फिर वो अपनी शादीशुदा व्यस्त हो गयी। लेकिन फिर कुछ पारिवारिक मजबूरी के चलते उन्होंने दोबारा फिल्मों में गीत गाने के बारें में सोचा लेकिन उस समय की गायिकाओं लता मंगेशकर और आशा भोंसले के सामने उनका गाना मुश्किल था ऐसे में संगीतकार नौशाद ने ही उमा देवी से कहा कि, "वो फिल्मों में अभिनय क्यों नहीं करती।" क्योंकि उमा देवी का खुशनुमा मिज़ाज़ और गज़ब की कॉमिक टाइमिंग थी । उमा देवी ने नौशाद साहब की बात सुन कर कहा कि , " मैं फिल्म में काम तभी करूँगी अगर इस फिल्म में दिलीप कुमार भी होंगे। इत्तेफाक से उनकी पहली फिल्म "बाबुल " के नायक दिलीप कुमार ही थे।  बस इसी फिल्म से हम सबकी प्रिय "टुनटुन" का जन्म हुआ। क्योंकि इससे पहले वो उमा देवी के नाम से गीतों को गाती थीं। जब उमा देवी ने फिल्मों में काम करने के बारें में सोचा , उनका वजन भी बढ़ चुका था ऐसे में उनके गोल मोल शरीर को देखकर उनके प्रिय अभिनेता दिलीप कुमार ने ही उनका नाम टुनटुन रख दिया।       

५ दशको तक टुनटुन ने हिंदी , उर्दू और पंजाबी भाषा की करीब १९८ फिल्मों में काम किया।उन्होंने अपने समय के सभी बड़े हास्य कलाकारों जैसे भगवान दादा, आगा , सुन्दर, मुकरी , धूमल , जॉनी वॉकर और केश्टो मुखर्जी के साथ काम किया है। उमा के टुनटुन नाम रखते ही वो दर्शकों में लोकप्रिय होती चली गयी। हालाँकि हर फिल्म में उनके भारी शरीर का मजाक बनता था और दर्शक भी उनको परदे पर देखते ही हँस हँस कर लोट पोट हो जाते थे। अपने भारी आकार के चलते टुनटुन आज भी हम सबके बीच लोकप्रिय हैं कि जब हम किसी मोटी महिला को देखते हैं  तो उसे  टुनटुन
कहते हैं।     

टुनटुन ने फिल्म  बाबुल (१९५० ) से अभिनय की ओर पहला कदम रखा और इसके बाद उन्होंने बाज ,आर पार ,उड़न खटोला , मिस्टर एंड मिसेज ५५, श्री ४२० , मिस कोकाकोला, राजहठ, बेगुनाह, उजाला, कोहिनूर, नया अंदाज़, १२ ओ क्लॉक, दिल अपना और प्रीत पराई, कभी अन्धेरा कभी उजाला, मुजरिम, जाली नोट, एक फूल चार कांटे, कश्मीर की कली, अक़लमन्द, सीआईडी 909, दिल और मोहब्बत, एक बार मुस्कुरा दो , अन्दाज़, जागते रहो ,पॉकेटमार ,सी आई डी ,प्यासा , कागज़ के फूल , दिल भी तेरा हम भी तेरे ,बंबई का बाबू ,गंगा जमुना , प्रोफ़ेसर ,चौहदवी का चाँद , सन ऑफ़ इंडिया उस्तादों के उस्ताद , शिकारी, गहरा दाग ,एक दिल सौ अफ़साने , ब्लफ मास्टर ,मिस्टर एक्स इन बॉम्बे , कश्मीर की कली , गंगा की लहरें ,राजकुमार ,काजल , जब जब फूल खिलें ,अली बाबा ४० चोर , फूल और पत्थर , दिल दिया दर्द लिया ,उपकार , आखिरी खत ,आबरू , बहारों की मंजिल ,साधु और शैतान शराफत , दो रास्ते गीत , आंसू और मुस्कान ,हीर राँझा , जौहर महमूद इन हांगकांग ,हलचल , हँगामा , समाधि , मोम की  गुड़िया ,बेईमान , अपराध , बिंदिया और बन्दूक ,आँखों आँखों में , गोमती के किनारे ,बंधे हाथ , कच्चे धागे ,ठोकर , शैतान , नया दिन नई रात ,अमीर गरीब , धोती लोटा और चौपाटी ,रंगीला रतन , बंडलबाज़,आपबीती , नागिन ,अमानत , चाचा भतीजा ,  सत्यम शिवम सुंदरम ,अँखियो के झरोखे से , लोक परलोक ,बातों बातों में , कुर्बानी , बीवी ओ बीवी , सन्नाटा ,नमक हलाल, हथकड़ी, डिस्को डांसर पेंटर बाबू , हादसा , कुली दीवाना तेरे नाम का , कसम धंधे की, आदि फिल्मों में अभिनय किया और अपने चाहने वालों को जी भर कर हँसाया। 

टुनटुन का नाम सुनते ही एक गोल-मटोल काया और हँसता-मुस्कुराता चेहरा आज भी हमारी आँखों के सामने नाच उठता है। टुनटुन को बॉलीवुड की पहली सबसे सफ़ल महिला कॉमेडियन कहा जाये, तो गलत न होगा। उस दौर में अपनी कॉमेडी से उन्होंने जो ख्याति अर्जित की, उतनी ख्याति किसी अन्य महिला कॉमेडियन को हासिल नहीं हुई। गोल मटोल हम सबकी टुनटुन ने ८० साल की उम्र में २३ नवम्बर २००३ को मुंबई में अंतिम साँस ली। 

हास्य अभिनय का पर्याय महमूद

हास्य अभिनय का पर्याय माने जाने वाले अभिनेता, गायक , निर्माता , निर्देशक महमूद का पूरा नाम महमूद अली है।इनका जन्म २९ सितम्बर १९३२ को बॉम्बे में हुआ था।इनके पिता मुमताज़ अली एक लोकप्रिय अभिनेता और नर्तक थे, जो कि बॉम्बे टॉकीज़ में काम किया करते थे । बचपन से ही अभिनय की ओर रुझान था महमूद का। उनके इसी रुझान को देखते हुए उनके पिता ने १९४३ में बॉम्बे टॉकीज़ की बन रही फिल्म "किस्मत " में अशोक कुमार के बचपन की भूमिका के लिए उनकी सिफारिश भी की।  

चार दशकों से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों में अभिनय करने वाले महमूद ने यूँ तो अनेकों फिल्मों में अभिनय किया है और अपने अभिनय से दर्शकों को  हँसाया भी है ।लेकिन उनकी कुछ फिल्मों की भूमिकायें आज भी दर्शकों के दिलों में ताज़ा है। १९६५ में आयी फिल्म "गुमनाम " में बटलर की भूमिका थी उनकी। इस फिल्म में उन्होंने हैदराबादी भाषा बोली थी और दर्शकों का दिल लूट लिया था। इसी तरह १९६८ में आयी फिल्म "पड़ोसन " में वो अभिनेत्री सायरा बानो के संगीत गुरु मास्टर पिल्लै बने थे। क्या गज़ब की भूमिका थी इस फिल्म में उनकी। आज भी जब हम फिल्म "पड़ोसन " की बात करते हैं सबसे पहले महमूद का ही चेहरा हमारे सामने आता है।१९६६ की  फिल्म "प्यार किये जा " में महमूद अपने पिता बने अभिनेता ओम प्रकाश को अपनी हॉरर फिल्म की कहानी जिस तरह से सुनाते हैं। उसे देखकर भी दर्शकों को आज भी बहुत मज़ा आता है।१९७२ की फिल्म "बॉम्बे टू गोवा " में उनकी बस कंडक्टर की भूमिका भी बहुत ही लाजवाब थी। इस फिल्म का गाना "  मुत्तु कोड़ी कवारी हड़ा" को आज भी दर्शक सुनते हैं। १९७० में प्रदर्शित फिल्म ‘हमजोली’ में महमूद के अभिनय के विविध रूप दर्शकों को देखने को मिले। इस फिल्म में महमूद ने तिहरी भूमिका अभिनीत की थी।  १९७३ में आयी फिल्म "दो फूल " में महमूद की दोहरी भूमिका थी।
 
३०० के करीब फिल्मों में काम कर चुके हास्य अभिनेता कभी घर की आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिये महमूद, मलाड और विरार के बीच चलने वाली लोकल ट्रेन में टॉफिया बेचा करते थे। फिल्मों में अभिनय करने से पहले उन्होंने कार चलाना सीखा और निर्माता ज्ञान मुखर्जी ,गीतकार गोपाल सिंह नेपाली, भरत व्यास, राजा मेंहदी अली खान ,निर्माता पी.एल. संतोषी आदि के घर पर ड्राइवर का काम भी किया। महमूद ड्राइवर का काम भी कर रहे थे और जब मौका मिला जाता तो फिल्मों में काम भी कर लेते थे। ऐसा ही कुछ वाकया हुआ १९५१ में आयी फिल्म "नादान " की शूटिंग के दौरान। हुआ यूँ कि अभिनेत्री मधुबाला की एक जूनियर कलाकार  के साथ शूटिंग थी लेकिन वो बेचारा कलाकार १० रीटेक के बाद भी अपना संवाद सही से नहीं बोल पा रहा था। फिल्म निर्देशक हीरा सिंह ने महमूद को यह संवाद बोलने के लिये कहा , बस क्या था एक ही टेक में महमूद ने संवाद बोल दिया। इस काम के महमूद को ३०० रूपये मिले जबकि बतौर ड्राइवर महमूद को महीने मे मात्र ७५ रुपये ही मिला करते थे। इसी के चलते बाद में उन्होंने अपना नाम जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन में दर्ज करा लिया।  इसके बाद बतौर जूनियर आर्टिस्ट महमूद ने दो बीघा जमीन, जागृति, सी.आई.डी, प्यासा जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किये।

अभिनेता महमूद ने अनेकों फिल्मों में अभिनय किया लेकिन उन्हें भी  ए वी मयप्पन द्वारा स्थापित भारतीय फिल्म निर्माण स्टूडियो एवीएम प्रोडक्शंस कंपनी ने  फिल्म "मिस मैरी" के लिये दिये स्क्रीन टेस्ट में फेल कर दिया, यह कह कर कि महमूद ना कभी अभिनय कर सकते हैं ना ही अभिनेता बन सकते है। लेकिन बाद के दिनों में एवीएम बैनर ने महमूद को लेकर बतौर अभिनेता फिल्म ‘मैं सुदर हूं’  का निर्माण भी किया। इसी तरह महमूद अपने रिश्तेदार कमाल अमरोही के पास फिल्म में काम मांगने के लिये गये तो उन्होंने भी महमूद को यह कह दिया कि आप अभिनेता मुमताज अली के पुत्र हैं और जरूरी नहीं है कि एक अभिनेता का पुत्र भी अभिनेता बन सके। आपके पास फिल्मों में अभिनय करने की योग्यता नहीं है। आप चाहे तो मुझसे कुछ पैसे लेकर कोई अलग व्यवसाय कर सकते हैं।

अभिनेता महमूद ने फिल्मों में किसी की भी सिफारिश पर काम करना पसंद नहीं किया। उन्होंने फिल्मों में जो भी मुकाम पाया खुद अपने ही बल पर।
१९६१ में महमूद ने अपनी पहली फिल्म ‘छोटे नवाब’ का निर्माण किया और अपनी फिल्म में उन्होंने आर .डी. बर्मन उर्फ पंचम दा को बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में पहली बार पेश किया। महमूद ने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया। महमूद ने कई फिल्मों में अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया। महमूद को अपने सिने कैरियर में तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। निर्देशक के रूप में उन्होंने १९६५ में आयी भूत बंगला ,१९७४ में कुंवारा बाप ,१९७६ में जिनी और जॉनी ,१९७८ में एक बाप छ बेटे और १९९६ में दुश्मन दुनियाँ का आदि फिल्मों का बनाया है।  
बाद में महमूद का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। वह इलाज के लिए अमेरिका गये।  जहाँ २३  जुलाई २००४ को ७१ की आयु में  उनका निधन हो गया।

मुकरी एक काज़ी भी थे अभिनेता से पहले

कभी उन्होंने हमें तैय्यब अली बन कर हँसाया और कभी नत्थू लाल बन कर , जी हाँ हम बात कर रहे हैं हमेशा अपने चेहरे पर मुस्कान लिये हुए उस अभिनेता मुकरी की जिसने करीब ५० साल तक फिल्मों में सशक्त अभिनय करके दर्शकों का मनोरंजन किया। मुकरी का जन्म ५ जनवरी १९२२ को अलीबाग के कोंकणी मुस्लिम परिवार में हुआ। 

मुकरी का पूरा नाम मोहम्मद उमर मुकरी था।  फिल्मों में आने से पहले वो एक क़ाज़ी के रूप में काम करते थे। बच्चों को मदरसे में कुरान पढ़ाते थे। यह सब करने के बावजूद उनकी आय बहुत सीमित थी जिससे घर का खर्च चल पाना संभव नहीं था। इसी के चलते मुकरी ने फिल्मों में काम करने के बारें में सोचा। इस बारे में उन्होंने अपने स्कूल के मित्र दिलीप कुमार से बात की। दिलीप कुमार के कहने पर ही उन्हें बॉम्बे टॉकीज़ में उन्हें जूनियर सहायक की नौकरी मिल गयी। बाद में उन्होंने निर्देशक के आसिफ के सहायक के तौर पर भी काम किया। इसके कुछ समय बाद में उन्होंने पूरी तरह फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया।  

 ६०० फिल्मों में अभिनय कर चुके मुकरी ने फिल्मों में अपना अभिनय सफर शुरू किया १९४५ में अपने स्कूल मेट्स दिलीप कुमार के साथ फिल्म "प्रतिमा " में।  अभिनेता दिलीप कुमार के साथ मुकरी की गहरी दोस्ती थी साथ ही दोनों ने अनेकों फिल्मों में भी काम किया। इसके अलावा अभिनेत्री निम्मी उनके पति अली रजा , अभिनेता महमूद और नर्गिस भी मुकरी के दोस्तों में शामिल थे। नर्गिस तो मुकरी की सगी बहन जैसी ही थीं। 

दर्शकों को हँस हँस का लोट पोट कर देने वाले मुकरी अपनी असली जिंदगी में बहुत ही धार्मिक इंसान थे हालाँकि वो फिल्मों में अभिनय करते थे लेकिन उनके बच्चों को फ़िल्में देखने की इज़ाज़त नहीं थी। लम्बू यानि अमिताभ बच्चन और टिंकू यानि मुकरी की जोड़ी को भी दर्शकों ने बहुत पसंद किया। हम सभी को फिल्म "शराबी " का यह संवाद "मूछें हो तो नत्थू लाल जैसी वरना न हों " आज भी याद। यह संवाद अमिताभ बच्चन ने मुकरी के लिए ही बोला था। इस फिल्म के अलावा दोनों ने गंगा की सौगंध, नसीब, मुक़द्दर का सिकंदर, लावारिस, महान, कुली , खुद्दार ,अमर अकबर अन्थोनी ,गंगा जमुना सरस्वती , जादूगर आदि फिल्मों में साथ में काम किया। 

वैसे तो मुकरी ने अनेकों फिल्मों में अभिनय किया है लेकिन जब - जब हम उनके हास्य अभिनय का जिक्र करते हैं तो फिल्म "अमर अकबर एंथोनी " के तैय्यब अली का जिक्र जरूर आता है। इस फिल्म में वो अभिनेत्री नीतू सिंह के अब्बा की भूमिका में थे।  इस फिल्म में उनके किरदार पर एक गीत भी था "तैय्यब अली प्यार का दुश्मन।" १९७२ में आयी फिल्म "बॉम्बे टू गोवा " में दक्षिण भारतीय के किरदार में उन्होंने दर्शकों को खूब हँसाया। १९६७ में आयी फिल्म "मिलन " में जग्गू के किरदार में भी उन्होंने बहुत रंग जमाया। फिल्म "सुहाना सफर " में उन्होंने शशि कपूर के दोस्त बन कर दर्शकों का मनोरंजन किया। फिल्म " कुँवारा बाप" और फिल्म "पड़ोसन" में उन्होंने शानदार अभिनय किया था। 

पाँच बच्चों के पिता मुकरी की आखिरी फिल्म थी १९८४ में आयी फिल्म "शराबी। " उनकी कुछ अन्य फ़िल्में इस प्रकार थीं --   आन , अनोखा प्यार , सज़ा, बाग़ी , अमर , पैसा ही पैसा ,  मिर्ज़ा ग़ालिब , इनाम ,चोरी चोरी , आवाज़ , मदर इंडिया ,सोहनी महिवाल , मालिक , काला पानी ,काली टोपी लाल रुमाल ,कोहिनूर ,अनाड़ी , अनुराधा ,संगीत सम्राट तानसेन , बड़ा आदमी ,सन ऑफ़ इंडिया , असली नकली , मनमौजी, देवकन्या , बहूरानी , फूल बने अँगारे ,हिमालय की गोद में ,जौहर महमूद इन गोवा ,बहू बेटी ,  स्मगलर ,मेरा साया , सूरज ,मेहरबान , फ़र्ज़ ,चंदन का पालना , अनीता, वासना , साधु और शैतान ,नन्हा फरिश्ता , आबरू , राजा और रंक ,चिराग , भाई - बहन , दो रास्ते ,मेरा नाम जोकर , गोपी ,देवी , दर्पण , भाई भाई , बचपन , प्रेम पुजारी ,मैं सुन्दर हूँ , लाखों में एक ,जौहर महमूद इन हॉन्ग कॉंग ,ज्वाला , एक नारी एक ब्रह्मचारी , अलबेला , उपासना , प्यार की कहानी ,अपराध , पिया का घर ,सूरज और चंदा , मेरे गरीब नवाज़ ,मेहमान , हनीमून ,हीरा , लोफर , दुनिया का मेला ,दो फूल , नया दिन नयी रात ,बंडलबाज , बैराग, अर्जुन पंडित, सबसे बड़ा रुपया , फकीरा , चाँदी सोना ,अमानत ,अब्दुल्ल्ह , द बर्निग ट्रेन,क़र्ज़ , उमराव जान , कातिलों के कातिल , धर्म  काँटा , विधाता , अनोखा बंधन ,हम दोनों , बाबू ,कर्मा , परिवार ,हवालात, राम लखन , गैर कानूनी, दाता , बेताज बादशाह आदि। 

अपने हास्य अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाले मुकरी का इंतकाल ७८ वर्ष का अवस्था में ४ सितम्बर २००० को मुंबई के लीलावती अस्पताल में हुआ।

लाजवाब हास्य कलाकार सतीश शाह

बड़े परदे के साथ - साथ उन्होंने अपने अभिनय का जलवा छोटे परदे पर भी बिखेरा और जी भर कर दर्शकों को हँसाया। जी हाँ हम बात कर रहे हैं हास्य अभिनेता सतीश शाह की।  जिन्होंने फिल्म "मैं हूँ ना  " में टीचर बन कर हँसाया तो फिल्म "भूतनाथ" में ऐसे प्रिंसिपल की भूमिका निभायी जो बच्चों का टिफिन खा जाता था। २५ जून १९५१ को जन्मे सतीश शाह ने हिंदी फिल्मों के साथ - साथ मराठी फिल्मों में भी अभिनय किया है। उन्होंने अपना अभिनय कॅरियर शुरू किया १९७० में फिल्म "भगवान परशुराम " से।लेकिन सतीश दर्शकों में लोकप्रिय हुए १९८४ के टी वी धारावाहिक "ये जो है जिंदगी " से। कुंदन शाह और मंजुल सिन्हा के इस धारावाहिक में उन्होंने ५५ एपिसोड में ५५ अलग - अलग किरदार अभिनीत किये ,जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है।  

सतीश शाह की कॉमिक टाइमिंग बहुत ही गज़ब की है।  उन्होंने १९९५ में ज़ी टी वी पर प्रसारित शो "फ़िल्मी चक्कर " में काम किया और यहाँ भी उन्होंने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। हास्य धारावाहिक "साराभाई वर्सेज साराभाई " में उन्होंने इंद्रवदन की भूमिका बहुत ही लाजवाब तरीके से निभाई। यह हास्य धारावाहिक आज भी दर्शकों में बहुत लोकप्रिय है।इन दोनों ही धारावाहिकों में उनकी जोड़ी अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह के साथ थी। अभिनेत्री स्वरूप सम्पत के साथ इन्होने ये जो है जिंदगी और ऑल डी बेस्ट आदि दो धारावाहिकों में  काम किया। २००७ में हास्य शो "कॉमेडी सर्कस " में उन्होंने जज की भी भूमिका भी निभायी।

यूँ तो सतीश शाह ने करीब २५० फिल्मों में अभिनय किया है लेकिन उनकी कुछ भूमिकायें ऐसी हैं जिन्हें आज भी याद करने से हम सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती हैं।  सबसे पहले हम बात करते हैं १९८४ में आयी फिल्म "जाने भी तो यारों " की। निर्देशक कुंदन शाह की इस फिल्म में उन्होंने नगर निगम आयुक्त  डी मेलो की भूमिका निभायी थी। बहुत ही अच्छा अभिनय किया था उन्होंने। यह फिल्म क्लासिक फिल्म मानी जाती है। १९८८ में आयी फिल्म "मालामाल " में उनकी शानदार भूमिका थी। १९९४ की फिल्म "कभी हाँ कभी ना " में सतीश ने साइमन का किरदार अभिनीत किया था। इसी साल आयी फिल्म "हम आपके  कौन " में उन्होंने हँसने हँसाने वाले डॉ बनकर दर्शकों का मनोरंजन किया। १९९५ की सबसे लोकप्रिय फिल्म "दिल वाले दुल्हनियाँ ले जायेगें " में सतीश ने अमरीश पुरी के दोस्त अजित सिंह का किरदार अभिनीत किया था। १९९६ की फिल्म "जुड़वाँ " में उन्होंने हवलदार बन कर दर्शकों को खूब हँसाया।१९९९ की लोकप्रिय फिल्म "हम साथ - साथ हैं " में सतीश ने अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे के पिता की भूमिका अभिनीत की। २००२ की फिल्म "साथिया " में उन्होंने विवेक ओबेरॉय के पिता की सशक्त भूमिका अभिनीत की। यही नहीं उन्होंने फिल्म "चलते चलते" मनुभाई का शानदार किरदार अभिनीत किया।फिल्म "कल हो न हो " में उन्होंने सैफ अली खान पिता कृष्ण भाई पटेल यानि एक गुज्जू की भूमिका अभिनीत की। इसी तरह "मस्ती " में डॉ कपाड़िया बने सतीश शाह और फिल्म  "मैं हूँ ना " में ऐसे प्रोफ़ेसर का किरदार निभाया जो कि जब जब बात करता था उसके मुँह से इतना थूक निकलता था सामने वाले के चेहरे पर गिरता था।   २००७ में आयी फिल्म "ओम शांति ओम " में वो पार्थो दास बने , भूतनाथ में  वो प्रिंसिपल बने तो कि छोटे छोटे बच्चों का टिफिन खा जाता था। २०११ में आयी शाहरुख़ खान की फिल्म "रा वन" में वो अय्यर अंकल बने  . सतीश शाह की आखिरी फिल्म आयी २०१४ में साजिद खान की "हमशकल्स। " इसमें वो वाय एम राज के किरदार में थे।   

इन फिल्मों के अलावा कुछ अन्य फिल्मों में भी उन्होंने अभिनय किया, वो हैं ---अरविन्द देसाई की अजीब दास्ताँ , गमन , उमराव जान ,अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है ,शक्ति , पुराना मंदिर ,अनोखा रिश्ता , मैं बलवान , अपने अपने , कलयुग और रामायण ,जान हथेली पे , मार धाड़ , वीराना ,साथ -साथ , अर्ध सत्य ,मोहन जोशी हाज़िर हो , भगवान दादा , अंजाम , आग और शोला ,लव ८६ , घर में राम गली में श्याम ,घर वाली बाहर वाली ,पुरानी हवेली ,हातिम ताई , मेरा पति सिर्फ मेरा है ,थानेदार , जान पहचान ,बेनाम बादशाह , नरसिम्हा ,आशिक आवारा , सैनिक बाज़ी , अकेले हम अकेले तुम ,साजन चले ससुराल ,हीरो नंबर वन , हिमालय पुत्र , गुलाम ए मुस्तफा , सात रंग के सपने, प्रेम अगन , तिरछी टोपी वाले , कहो न प्यार है, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी ,इश्क़ विश्क , हर दिल जो प्यार करेगा ,ओम जय जगदीश ,मुझसे दोस्ती करोगे , जीना सिर्फ मेरे लिए , मुझसे शादी करोगी , राम जी लंदन वाले ,शादी नंबर वन , फ़ना , दीवाना तेरे नाम का , जस्ट मैरिड ,मिलेगें मिलेगें , खिचड़ी रमैया वस्तावैया ,क्लब ६० आदि। 

सतीश शाह का पूरा नाम सतीश रविलाल शाह है। इनकी अभिनय को अपना पेशा बनाने के पीछे भी कहानी है वो यह कि वो बचपन से ही सतीश खेलों के शौक़ीन थे और इसी क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाना चाहते थे लेकिन एक बार स्कूल के स्टेज पर वो उन्होंने ऐसा शानदार अभिनय किया और तारीफें पायी बस उन्होंने सोच लिए कि अब तो फिल्मों में अभिनय करना ही है। 

सतीश शाह को भी कोरोना हो गया था लेकिन अब वो पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घर में आराम कर रहे हैं।  

Tuesday, September 15, 2020

बस कंडक्टर से कैसे बने हास्य कलाकार -- जॉनी वॉकर


"सर जो तेरा चकराये या दिल डूबा जाये " यह लोकप्रिय गीत तो आप सभी सुना होगा और गुनगुनाया भी होगा।  फिल्म "प्यासा "  के इस गीत को परदे पर हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर पर फिल्माया गया था।  ११ नवम्बर १९२६ को जन्मे जॉनी वॉकर का असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी था। जॉनी वॉकर नाम तो उन्हें अभिनेता गुरुदत्त ने दिया था। आइये जानते हैं एक बस कंडक्टर से लोकप्रिय हास्य अभिनेता कैसे बने  बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी। 

३०० के करीब हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय की छाप छोड़ने वाले जॉनी वॉकर का जन्म इंदौर में हुआ था। वहां उनके पिता एक मिल में काम करते करते थे। रोजी -  रोटी की तलाश में उनका परिवार बॉम्बे चला आया। बॉम्बे में बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी ने अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए कभी फल बेचे कभी सब्जी तो कभी उन्होंने आइस क्रीम भी बेची और फिर बाद में उनकी नौकरी एक बस कंडक्टर के रूप में लग गयी। हालाँकि वो नौकरी करते थे लेकिन उनका सपना था फिल्मों में हास्य कलाकार बनने का। बदरुद्दीन नूर मोहम्मद चार्ली के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उनके द्वारा परदे पर अभिनीत अदाकारी को अपने जीवन में करके लोगों को हँसाया करते थे। यहां तक वो अपनी मिमिक्री से बस के यात्रियों का मनोरंजन भी किया करते थे। ऐसी ही किसी बस में लोकप्रिय अभिनेता बलराज साहनी ने बदरुद्दीन को देखा और अभिनेता गुरुदत्त से मिलवाया।

अभिनेता बलराज साहनी उन दिनों फिल्म "बाज़ी " लिख रहे थे। उन्होंने बदरुद्दीन को गुरुदत्त के ऑफिस में बुलाया जहाँ गुरुदत्त चेतन आनंद के साथ किसी बात पर चर्चा कर रहे थे, तभी कहीं से बदरुद्दीन आ गये शराबी बन कर  उन दोनों के बीच में पँहुच गये और गुरुदत्त को परेशान करने लगे। जब गुरुदत्त कुछ ज्यादा ही परेशान हो गये तब उन्होंने अपने स्टाफ को हिदायत दी कि शराबी बने बदरुद्दीन को ऑफिस से बाहर निकालने की। तभी बलराज साहनी आ गये और जोर -- जोर से हँसने लगे और उन्होंने गुरुदत्त को बदरुद्दीन के बारें में सब बताया। बदरुद्दीन के अभिनय से इतने प्रभावित हुए गुरुदत्त कि उन्होंने अपनी फिल्म "बाज़ी " में उन्हें काम भी दे दिया साथ ही उन्होंने जॉनी वॉकर शराब के एक लोकप्रिय ब्रांड के नाम पर  बदरुद्दीन को नया नाम जॉनी वॉकर भी दिया। बस तभी से बदरुद्दीन हम सबके जॉनी वॉकर बन गये। फिल्म "बाज़ी" के बाद जब भी गुरदत्त ने कोई फिल्म बनाई उन्होंने जॉनी वॉकर को अपनी फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका अवश्य ही दी। गुरुदत्त और जॉनी वॉकर ने एक साथ बाज़ी ,आर पार, मिस्टर ऐंड मिसेज ५५ , सीआईडी, प्यासा, कागज के फूल आदि फिल्मों में काम किया है। 

हास्य अभिनेताओं पर गीत फिल्माने का सिलसिला भी अभिनेता जॉनी वॉकर के समय में ही हुआ।फिल्म 'आर पार' का गाना 'अरे तौबा तौबा' जॉनी वाकर पर फिल्माया गया पहला गाना था। बाद में उन पर सर जो तेरा चकराए , ये है बम्बई मेरी जान, जाने कहां मेरा जिगर गया जी, जंगल में मोर नाचा किसने देखा, गरीब जानके हमको न तुम भुला देना, हम भी अगर बच्चे होते और मैं बम्बई का बाबू जैसे कई सदाबहार गाने उन पर  फिल्माये गये। जॉनी वॉकर  के  गीतों की लोकप्रियता का आलम यह था कि फिल्म निर्माता विशेष रूप से  लिये अपनी फिल्मों में उनके गीतों को रखवाने लगे। जॉनी वॉकर  ही पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने सेकेटरी रखने का चलन शुरू किया।  सबसे पहले जॉनी वॉकर ने ही संडे को शूटिंग नहीं करने का फैसला किया। 

 हास्य भूमिकाओं में जॉनी इस कदर जमे कि उन्हें मुख्य भूमिका में लेकर मिस्टर कार्टून एम.ए. ,जरा बचके, रिक्शावाला, मिस्टर जॉन जैसी फिल्में बनने लगीं। एक फिल्म तो उनके ही नाम 'जॉनी वाकर' भी थी । जॉनी वॉकर ने जब भी किसी किरदार को अभिनीत किया वो दर्शकों के दिलों पर छा गया , जैसे १९७१ में आयी  ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म "आनंद" का किरदार।  ईसा भाई सूरतवाला का किरदार एक ऐसा किरदार है जिसे आज भी दर्शक याद करते हैं और उसका बोला संवाद  "जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह। हम सब रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है। कब, कौन, कैसे उठेगा, कोई नहीं बता सकता।' कहते है कि यह किरदार फिल्म में बहुत ही छोटा था और उस समय जॉनी फिल्म के नायक के बराबर की भूमिका करते थे। फिल्म "आनंद "  की इस छोटी भूमिका के लिए ऋषिकेश मुखर्जी ने उन्हें बड़ी मुश्किल से तैयार किया। 

सन १९५१ में फिल्म "बाज़ी " से अपना अभिनय सफर शुरू करने वाले  जॉनी वॉकर ने ने १९८८ तक लगातार अपने अभिनय से दर्शकों को हँसाया। लेकिन इसके बाद अश्लील हास्य और द्विअर्थी संवादों की वजह से वो फिल्मों से दूर हो गये लेकिन जब १९९७ में अभिनेता कमल हासन ने उन्हें फिल्म "चाची ४२० " के लिए अप्रोच किया तो वो मना नहीं कर सके। जॉनी वॉकर को उनके हास्य अभिनय के लिये फिल्म "शिकार " के लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था। इसी तरह फिल्म "मधुमती " के लिए सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था। 

ऐसा शराबी जिसने कभी शराब नही पी -- केश्टो मुखर्जी

हास्य अभिनेता केश्टो मुखर्जी का नाम आते ही हम सभी की आँखों के आगे के एक ऐसे शराबी का चेहरा सामने आने लगता है जो दारु के नशे में बात करता है और लड़खड़ा कर चलता है और ऐसे संवाद बोलता है जिसे सुनकर देखकर हम हँस - हँस कर लोट पोट हो जाते हैं। केश्टो मुखर्जी ऐसे हास्य कलाकार थे जिन्होंने फिल्मों में सबसे ज्यादा शराबी की भूमिकायें अभिनीत की। जबकि असली जिंदगी में उन्होंने कभी दारु नहीं पी।

केश्टो मुखर्जी का जन्म ७ अगस्त १९०५ को मुंबई यानि उस समय के बॉम्बे में हुआ था। उन्होंने अपने अभिनय सफर की शुरुआत बंगाली फिल्मों से की। उन्होंने  लोकप्रिय निर्देशक ऋत्विक घटक की बारी थेके पालिये ,अजंत्रिक , नागरिक और जुक्ति टक्को आर गप्पो आदि फिल्मों में काफी महत्वपूर्ण भूमिकायें अभिनीत की। यूं तो केश्टो ने सन १९५७ में फिल्म "मुसाफिर " हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत की। लेकिन शराबी की भूमिका जिसके लिए वो लोकप्रिय हुए उन्हें १९७० में रिलीज़ फिल्म " माँ और ममता " में मिली। 

हुआ कुछ यूँ कि निर्देशक असित सेन को एक ऐसे अभिनेता की जरूरत थी जो शराबी का किरदार अभिनीत कर सके और केश्टो मुखर्जी को काम की तलाश थी। हालाँकि इस फिल्म से पहले केश्टो ने मुसाफिर , खजांची , राखी और रायफल , मासूम , परख , आरती, आशिक , प्रेम पत्र , असली नकली ,राहु केतु ,बीवी और मकान , मँझली दीदी ,  अपना घर अपनी कहानी ,पड़ोसन , पिंजरे के पंछी और अनोखी रात आदि फिल्मों में काम किया था। 

निर्देशक असित सेन ने अपनी फिल्म में केश्टो को शराबी की भूमिका दी और केश्टो ने भी उस भूमिका को ऐसे निभाया कि उनका शराबी किरदार  दर्शक क्या फिल्म निर्माता- निर्देशकों को भी बेहद पसंद आया बस फिर क्या था जब भी किसी फिल्म में शराबी की भूमिका हो अभिनेता बस केश्टो ही होते थे। हर फिल्म में शराबी की उनकी भूमिका इतनी सशक्त होती थी कि लोग समझने लगे कि वो पक्के शराबी हैं। जबकि असल में ऐसा बिलकुल भी नहीं था।

कहा जाता है  कि एक फिल्म में केश्टो ने कुत्ते की भी आवाज़ निकाली थी। उन्हें काम की तलाश थी तो वो फिल्म निर्देशकों  से मिलते रहते थे। इसी तरह केश्टो बिमल दा से भी मिले लेकिन केश्टो के योग्य उनके पास कोई किरदार नहीं था। उन्होंने उन्हें मना किया कि अभी उनकी फिल्म में कोई भूमिका नहीं है  लेकिन इसके बावजूद भी केश्टो गये नहीं उनके पास ही खड़े रहे तब बिमल दा को गुस्सा आ गया और उन्होंने उनसे पूछा कि क्या कुत्ते की आवाज़ निकाल सकते हो। केश्टो भी कहाँ पीछे हटने वाले थे उन्होंने कुत्ते की आवाज़ निकाल कर विमल दा को भी अचम्भित कर दिया।

शराबी की भूमिकाओं के अलावा भी कुछ फ़िल्में ऐसी हैं जिनमें केश्टो ने बेहतरीन काम किया। उन्होंने गुलज़ार की फिल्म "मेरे अपने" में अभिनेत्री मीना कुमारी के दूर के रिश्तेदार का किरदार अभिनीत किया था। इसी तरह गुलज़ार की फिल्म "परिचय " में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने वाले टीचर की भूमिका की। जिसे बच्चे डरा कर भगा देते हैं।फिल्म जंजीर , शोले  और आपकी कसम में उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया। तीसरी कसम में केश्टो ने राज कपूर के साथ काम किया। फिल्म "साधु सुर शैतान" के अलावा फिल्म "पड़ोसन " में उन्होंने अभिनेता किशोर कुमार के साथ काम किया। इसी तरह अभिनेता महमूद की फिल्म "बॉम्बे टू गोवा " में एक ऊंघते हुए यात्री का किरदार अभिनीत किया।

यूँ तो केश्टो मुखर्जी ने अनेकों फिल्मों में अभिनय किया है लेकिन जब - जब उनकी फिल्मों का जिक्र होगा तब उनकी फिल्म  "पड़ोसन" , पिया का घर , तीसरी कसम , गुड्डी, चुपके चुपके ,  लोफर , जंजीर ,द बर्निग ट्रेन ,गोलमाल ,खूबसूरत  आदि फिल्मों का नाम जरूर लिया जायेगा।  १५० के करीब फिल्मों में अभिनय करने वाले केश्टो मुखर्जी की मृत्यु २ मार्च १९८२ को हुई। उनकी बेटी सुष्मिता मुखर्जी फिल्मों और टी वी में आज भी काम करती हैं और उनके बेटे  बबलू मुखर्जी क्या करते हैं नहीं पता लेकिन एक समय में उन्होंने अनेकों टी वी धारावाहिकों में काम किया है।  

Friday, March 13, 2020

5 वां भारत आइकन अवॉर्ड










5 वें भारत आइकॉन अवार्ड के इवेंट के लिए जुहू के इस्कॉन में सितारे उमड़ पड़े। भारत आइकन अवार्ड्स के सीएमडी अखिल बंसल ने इस्कॉन ऑडिटोरियम, जुहू में भारत आइकन अवार्ड के पांचवें संस्करण का आयोजन किया, जहाँ उन्होंने बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को सम्मान से नवाजा। यह पुरस्कार रॉयल हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया था। इस पुरस्कार के पीछे स्वच्छ भारत अभियान और सेव द गर्ल चाइल्ड को फोकस करना है। अभिनेता विकास गुप्ता, गौरव शर्मा, डिजाइनर रोहित वर्मा, निर्देशक-निर्माता अनिल शर्मा, के सी बोकाडिया, धीरज कुमार, मेहुल कुमार, फ्लोरा सैनी, रिधिमा तिवारी, भोजपुरी एक्ट्रेस रानी चटर्जी, प्रदीप पांडे, मंजू लोढ़ा, ब्राइट आउटडोर के योगेश लखानी, अदा खान जैसी कई हस्तियों को समारोह में पुरस्कार मिला। इस अवार्ड नाईट के लिए मिस इंडिया सिमरन आहूजा एंकर थी। भारत आइकॉन अवार्ड कार्यक्रम में सितारों की भीड़ नजर आयी। अखिल बंसल द्वारा आयोजित पांचवें भारत आइकॉन अवार्ड में फिल्म, टीवी जगत, सामाजिक और बिजनेस से जुड़े लोगों को सम्मानित किया गया। अखिल बंसल ने हस्तियों को अवार्ड देकर उनका सम्मान बढ़ाया। इस अवॉर्ड फंक्शन में रानी चटर्जी, डायरेक्टर राजकुमार पांडेय और चिंटू पांडेय भी हाज़िर हुए। 

कहानी -- हिंदी फिल्म -- अंग्रेजी मीडियम

कहानी -- हिंदी फिल्म -- अंग्रेजी मीडियम 
रिलीज़ --- १३ मार्च 
बैनर -- मैडॉक फिल्म्स , लंदन कॉलिंग प्रोडक्शन 
निर्माता -- दिनेश विजन , ज्योति देशपाण्डेय
निर्देशक -- होमी अदजानिया  
लेखक -- भावेश मांदलिया , गौरव शुक्ला , विनय छावल , सारा बोडीनर 
कलाकार -- इरफ़ान खान , करीना कपूर खान , राधिका मदान , दीपक डोबरियाल 
संगीत -- सचिन -- जिगर , तनिष्क बागची 
गीत -- तनिष्क बागची , जिगर सरैया , प्रिया सरैया 
आवाज़ --  सचिन -- जिगर, विशाल डडलानी , निकिता गाँधी ,रोमी , तनिष्का संघवी 

लेखक --निर्देशक  होमी अदजानिया  ने पहली फिल्म निर्देशित की थी २००६ में बीइंग सायरस। इसके बाद २०१२ में कॉकटेल और २०१४ में फाइंडिंग फेनी निर्देशित की।  २०१७ में इरफ़ान की दो फ़िल्में आयी हिंदी मीडियम और करीब - करीब सिंगल और २०१८ में आयी फिल्म "कारवाँ " .  फिर इसके बाद उन्हें न्यूरोएंडोक्रिने ट्यूमर जैसी गंभीर बिमारी हो गयी। बिमारी के इलाज़ के बाद उनकी पहली ही फिल्म है "अंग्रेजी मीडियम" ।  करीना की मुख्य फ़िल्में हैं --  मुझे कुछ कहना है , यादें , अजनबी , अशोका ,कभी ख़ुशी कभी ग़म , चमेली, देव, फ़िदा,मैं प्रेम की दिवानी हूँ ,युवा , ऐतराज़ ,ओमकारा ,जब वी मेट ,गोलमाल रिटर्न्स ,वी आर फैमिली , थ्री इडियट्स ,बॉडीगॉर्ड, बजरंगी भाईजान ,सिंघम रिटर्न्स , की एंड का,  वीरे दी वैडिंग और गुड न्यूज़ आदि ।  राधिका मदान ने टी वी धारावाहिक "मेरी आशिकी तुम से ही " फिल्मों में छलाँग लगायी है।  उनकी पहली फिल्म थी विशाल भारद्वाज की "पटाखा " और दूसरी थी "मर्द को दर्द नहीं होता "  । २०१७ में आयी फिल्म "हिंदी मीडियम " की सीक्वेल फिल्म है "अंग्रेजी मीडियम "। हिंदी मीडियम के निर्देशक थे साकेत चौधरी। 

पिता - पुत्री की भावनात्मक कहानी  है फिल्म "अंग्रेजी मीडियम " की। राजस्थान के एक शहर में तारिका बंसल ( राधिका मदान ) अपने पिता चम्पक बंसल ( इरफ़ान खान ) के साथ रहती है दोनों की अपनी हंसती खेलती छोटी सी दुनियाँ है।  तारिका को ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी , लंदन पढ़ने जाना है क्योंकि उसका सपना है  ऑक्सफ़ोर्ड जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने का , लेकिन छोटी सी मिठाई की दूकान चलाने वाले चम्पक के पास इतना रुपया पैसा नहीं है कि वो अपनी बेटी को पढ़ाई करने के लिए लंदन भेज सकें लेकिन फिर भी वो अपनी दूकान बेच कर जैसे तैसे रूपये इकठ्ठा कर  बेटी को  लंदन भेजते हैं।  

तारिका को लंदन भेजने में चम्पक को किन किन रास्तों से गुज़रना पड़ता है ? यही इस फिल्म में दिखाया गया है। 

Wednesday, March 11, 2020

गणेश आचार्या ने निर्देशक मनोज शर्मा की फिल्म "खली बली " के टाइटल ट्रैक को कोरियोग्राफ करने के साथ उसमें ऐक्ट भी किया


बॉलीवुड के मशहूर कोरियोग्राफर गणेश आचार्या ने निर्देशक मनोज शर्मा की अपकमिंग हॉरर कॉमेडी फिल्म "खली बली " का टाइटल ट्रैक शूट किया। मुंबई के एंजेल स्टूडियो में इस स्पेशल गाने को कायनात अरोड़ा और गणेश आचार्या पर फिल्माया गया। जी हां, इस गाने में खुद गणेश आचार्या भी डांस करते नजर आएंगे। फिल्म के निर्माता कमल किशोर मिश्रा हैं। फिल्म खली बली को वन एंटरटेनमेंट फिल्म प्रोडक्शंस और प्राची मूवीज के बैनर तले निर्मित किया जा रहा है। इस फ़िल्म के कलाकारों में धर्मेंद्र, मधु , रजनीश दुग्गल , कायनात अरोरा ,रोहन मेहरा ,विजय राज ,राजपाल यादव ,हेमंत पांडे , बृजेन्द्र काला, यासमीन ख़ान ,असरानी और एकता जैन शामिल हैं। इस फिल्म से मधु लंबे अरसे बाद कम बैक कर रही हैं।
कोरियोग्राफर गणेश आचार्या ने यहां मीडिया से बात करते हुए कहा कि मैंने संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत के लिए खली बली गीत कोरियोग्राफ किया था, जिसपर रणवीर सिंह ने गजब का डांस किया था। अब निर्देशक मनोज शर्मा की अपकमिंग फिल्म खली बल्ली का टाइटल ट्रैक मैंने कोरियोग्राफ किया है, जिसमे मैं डांस करते भी नजर आऊंगा। कायनात अरोड़ा ने इस गीत में बहुत अच्छा डांस किया है। फिल्म के निर्माता कमल किशोर मिश्रा ने इस गाने को बहुत बड़ा बनाने के लिए बजट से कोई समझौता नहीं किया है। गाने में काफी डांसर्स हैं और यह युथ को अट्रैक्ट करेगा। निर्देशक मनोज शर्मा से मेरे वर्षों के रिश्ते रहे हैं। वह मेरे अच्छे दोस्त और बेहतर इंसान हैं।"
फिल्म के निर्माता कमल किशोर मिश्रा ने यहां कहा कि मेरा सपना था कि मेरी फिल्म का एक गीत गणेश आचार्या जी कोरियोग्राफ करें और मेरा यह ड्रीम उन्होंने पूरा किया। मैं उनका शुक्रगुजार हूं।"
निर्देशक मनोज शर्मा ने बताया कि इस गाने को फिल्माने के साथ हमारी फिल्म की शूटिंग कंप्लीट हो गई है। फिल्म को जून जुलाई में रिलीज़ किया जाएगा। यह स्त्री जैसी एक हॉरर कॉमेडी फिल्म है। गणेश आचार्या जी से मेरे बहुत पुराने सम्बन्ध रहे हैं। मैंने जब उनसे इस गाने की गुजारिश की तो वह इसे कोरियोग्राफ करने और इस गाने में एक्ट करने के लिए तैयार हो गए। मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं।"
कायनात अरोड़ा ने कहा कि इस फिल्म का हिस्सा बनकर बहुत खुश और उत्साहित फील कर रही हूँ क्योंकि यह हॉरर कॉमेडी है. इसे आप सिचुएशनल कॉमेडी भी कह सकते हैं. इसमें धर्मेन्द्र और मधु जैसे फनकारों के साथ मुझे काम करने का मौका मिला है। गणेश मास्टर जी के साथ वर्किंग एकस्पिरियनस मेरे लिए यादगार रहा। फिल्म के डायरेक्टर मनोज शर्मा के साथ काम का अनुभव भी बहुत अच्छा रहा। स्त्री जैसी फिल्मो की सफलता ने साबित कर दिया है कि दर्शक हॉरर कॉमेडी जौनर की फिल्मों को भी पसंद करने लगे हैं।"

Sunday, March 8, 2020

महिला दिवस का उत्सव... हर रोज!








कुछ दिन पहले प्रशंसक रोमांचित हो गए थे, जब अंग्रेजी मीडियम डायरेक्टर होमी अडजानिया ने बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों के साथ एक प्रोमो वीडियो जारी किया था, जिसमें बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियां लोकप्रिय होते जा रहे गाने कुड़ी नू नाचने दे को गाते दिखीं थीं। चूंकि गाना वायरल हो गया है और लगता है कि हर लड़की का ऐन्थम बन गया है, हमने कुछकुड़ी ट्राइब से पूछा कि यह गाना उनके लिए इतना खास क्यों है।

आलिया भट्ट कहती हैं, "कुड़ी नू नाचने दे  एक लड़की को एक लड़की होने और उसे हासिल करने देने के बारे में बात करता है और एक बार जब वह ऐसा करती है तो वह कमाल करेगी और दुनिया भर में छा जाएगी।"

"यह बहुत दुख की बात है कि अब भी भारत में इतने सारे घरों में, लोग लड़की सिर्फ स्वतंत्र होने और उसे खुद पर विश्वास नहीं करने देते हैं। मुझे उम्मीद है कि हर लड़की अनुभव कर सकती है जिस तरह से मैंने किया" अनुष्का शर्मा कहती हैं।

कैटरीना कैफ ने शेयर किया, "लड़की को डांस करने का तरीका मत बताना... उसे अपने आपको सच्चा व्यक्त करने दो और दुनिया एक बेहतर जगह होगी।

इस उत्साहित, चमकदार हैप्पी सॉन्ग के वीडियो में आलिया भट्ट, कैटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा, कृति सैनॉन, जान्हवी कपूर, कियारा आडवाणी, अनन्या पांडे और राधिका मदन अपने आप को पेश कर रही हैं-खूबसूरत, नासमझ, मस्ती और पॉजिटिव स्पिरिट से भरी। यह पूरी तरह से अनस्क्रिप्टेड है और लड़कियों ने सचमुच गाना बजाया और नृत्य किया और कैमरे के सामने बेहिचक गाया ।

निर्देशक होमी अडजानिया ने कहा, "महिला दिवस मनाने के लिए सिर्फ एक दिन नहीं होना चाहिए, इसे हर दिन मनाया जाना चाहिए!"

जियो स्टूडियोज और प्रेम विजन 13 मार्च, 2020 को रीलीज़ होने वाली होमी अडजानिया द्वारा निर्देशित मैडॉक फिल्म्स प्रोडक्शन दिनेश विजन की अंग्रेजी मीडियम को पेश कर रहे हैं

मैदान ने क्यों कोई झंडे नहीं गाड़े समझ नहीं आया जबकि यह बेहतरीन फिल्म है

  कल  मैने प्राइम विडियो पर प्रसारित निर्देशक अमित रविंद्रनाथ शर्मा और अभिनेता अजय देवगन की फिल्म "मैदान" देखी। अजय देवगन की यह फि...