अभिनेता सतीश कौशिक को दर्शक आज भी सबसे ज्यादा फिल्म "मि इंडिया " के कैलेंडर के नाम से जानते हैं। हालाँकि उन्होंने अनेकों फिल्मों में शानदार अभिनय किया है। ६४ साल के इस अभिनेता ने फिल्मों , टी वी और थियेटर सभी जगह खूब काम किया है। बतौर अभिनेता तो उन्होंने अपनी जगह बनाई ही है साथ में एक लेखक और निर्देशक के रूप में भी उन्होंने बहुत काम किया है। १९८९ में फिल्म "राम लखन " और १९९६ में फिल्म "साजन चले ससुराल " इन दो फिल्मों के लिए सतीश को सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिल चुका है। ७ जनवरी को ओ टी टी प्लेटफॉर्म और सिनेमा घरों ,दोनों जगह उनकी फिल्म "कागज " रिलीज़ होने वाली है। एक लेखक , निर्देशक और एक अभिनेता , तीनों ही रूपों में सतीश इस फिल्म से जुड़े हुए हैं।
१३ अप्रैल १९५६,महेंद्रगढ़ में जन्में सतीश ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और यही से उन्हें नाटक देखने और उसमें अभिनय का रुझान हुआ। इसके लिये उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिला ले लिया। दिल्ली से ८०० रुपये लेकर मुंबई चले सतीश ने हिंदी फिल्मों में अपना एक अलग मुकाम बनाया है। सतीश कौशिक ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर सहायक फिल्म "मासूम" से की । कैसे उन्हें निर्देशक शेखर कपूर के सहायक का काम मिला। इसके बारें में उन्होंने एक रोचक किस्सा बताया कि , " स्व अभिनेता शम्मी कपूर जी का एक बॉय था। डबिंग स्टूडियो में कई बार मिलते हुए मेरी उससे दोस्ती हो गयी थी। उसने मुझे शेखर कपूर के बारें में बताया कि ,"शेखर को एक सहायक के जरूरत है। उसी ने मुझे शेखर कपूर का नंबर भी दिया। मैं शेखर से मिला भी अपने काम के लिए। लेकिन बाद में पता चला कि किसी राज कुमार संतोषी को उन्होंने अपने सहायक रख लिया है, मैं बहुत निराश हुआ लेकिन कुछ दिनों बाद शेखर का मुझे फोन आया कि अगर तुम मेरे साथ काम करना चाहते हो,तो आ जाना। बस क्या था मैं शेखर कपूर से जुड़ गया। उनके साथ मेरी पहली फिल्म थी "मासूम। " इसमें मैंने बतौर सहायक और एक अभिनेता दोनों रूपों में काम किया।"
जहाँ तक हम उनकी हास्य फिल्मों की बात करें तो सबसे पहला नाम आता है क्लासिक फिल्म "जाने भी दो यारों" (१९८३ ) का। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया और इसके संवाद भी लिखे रंजीत कपूर के साथ मिलकर। इस फिल्म में वो भ्र्ष्ट कांट्रेक्टर के सहायक बने थे। इसके बाद उनकी फिल्म आयी "मिस्टर इंडिया " जिसने उनकी जिंदगी ही पूरी तरह से बदल दी। इस फिल्म के दो किरदार आज भी दर्शकों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं एक है मोंगैंबो का और दूसरा है कैलेंडर का। कैलेंडर बन कर पतले सतीश ने दर्शकों को बेहद लुभाया। इसके बाद आयी १९८९ की लोकप्रिय फिल्म "राम लखन। " निर्देशक सुभाष घई की इस मल्टी स्टारर फिल्म में वो अनुपम खेर के नौकर की भूमिका में थे। नौकर बन कर भी सतीश ने दर्शकों को बहुत हँसाया। इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर का अवार्ड भी मिला था। इसके बाद फिल्म "साजन चले ससुराल " ( १९९६ ) में उन्होंने मुतु स्वामी के किरदार में एक बार फिर दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया और फिर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का अवार्ड हासिल किया। १९९७ में आयी फिल्म "दीवाना मस्ताना " उन्होंने पप्पू पेजर बनकर दर्शकों को हँसाया। ये दोनों ही फ़िल्में निर्देशक डेविड धवन की हैं। सन २००२ में आयी डेविड धवन की फिल्म "हम किसी से कम नहीं" इस फिल्म में भी उन्होंने फिर पप्पू पेजर बनकर दर्शकों की वाहवाही लूटी। फिल्म "बड़े मियाँ छोटे मियाँ ,परदेसी बाबू ,राजा जी, हसीना मान जायेगी , दुल्हन हम ले जायेगें , हद कर दी आपने , डू नॉट डिस्टर्ब , डबल धमाल , छलाँग आदि फिल्मों में हास्य अभिनय करके दर्शकों का आज तक मनोरंजन किया है सतीश कौशिक ने।
ऐसा नहीं है उन्होंने केवल हिंदी फ़िल्में की की । उन्होंने २००७ में ब्रिटिश निर्देशक साराह गेवरॉन की फिल्म " ब्रिक लेन " में भी अभिनय किया है। इस फिल्म में उन्होंने चानू अहमद का किरदार अभिनीत किया था। अपने किरदार को सशक्त बनाने के लिये उन्होंने वर्क शॉप्स ली और साथ में अंग्रेजी की क्लासेज भी ली। एक बांग्ला देसी लड़की की जिंदगी पर आधारित इस फिल्म में उनके साथ तनिष्ठा चटर्जी भी थीं। अच्छी भूमिका थी सतीश की लेकिन फिल्म सफल नहीं हुई। अपनी इस फिल्म के लिए सतीश को बहुत अफ़सोस है कि इस फिल्म को दर्शकों ने देखा तक नहीं।
सतीश ने अभिनय ही नहीं किया बल्कि उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया। हालाँकि उनकी निर्देशित अधिकतर फ़िल्में असफल ही रही हैं। उनकी पहली निर्देशित फिल्म थी १९९३ की सबसे मँहगी और असफल फिल्म "रूप की रानी चोरों का राजा। " अनिल कपूर और श्री देवी की जोड़ी भी इस फिल्म को नहीं बचा पायी। इसके बाद आयी १९९५ में "प्रेम " संजय कपूर और तब्बू की पहली फिल्म। यह भी औंधे मुँह जा गिरी। १९९६ में आयी फिल्म " मिस्टर बेचारा " के निर्माता थे सतीश। यह फिल्म भी बेचारी ही साबित हुई। १९९९ में आयी "हम आपके दिल में रहते हैं " इसे भी कुछ ज्यादा सफलता नहीं मिली। २००० में हमारा दिल आपके पास है ,२००१ में मुझे कुछ कहना है दोनों ही फ़िल्में सफल रहीं। २००२ में आयी "बधाई हो बधाई " भी असफल फिल्म रही। २००३ में आयी फिल्म " तेरे नाम " सलमान खान और भूमिका चावला की इस फिल्म ने सफलता के परचम लहरा दिये। वादा (२००५ ) शादी से पहले (२००६ ) कर्ज (२००८ ) तेरे संग ( २००९ ) मिलेगें मिलेगें ( २०१० ) गैंग ऑफ़ घोस्ट (२०१० ) यह सभी फ़िल्में असफल रहीं। अब दर्शकों को उनकी आने वाली फिल्म "कागज़ " का इंतज़ार है। इस फिल्म में अभिनेता पंकज त्रिपाठी मुख्य भूमिका में हैं। सुनने में यह भी आ रहा है कि सतीश लोकप्रिय फिल्म "तेरे नाम " का सीक्वेल भी बना रहे हैं।
सतीश के परिवार में उनकी पत्नी शशि कौशिक और बेटी वंशिका कौशिक और बेटा शानू कौशिक हैं।
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