हास्य अभिनेत्री टुनटुन का नाम आते ही हम सभी के चेहरों पर एक मुस्कान सी आ जाती है। टुनटुन जब भी परदे पर नज़र आती थी दर्शक गुदगुदाये बिना नहीं रहते थे। टुनटुन का असली नाम उमा देवी खत्री था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के अलीपुर गाँव में ११ जुलाई १९२३ को हुआ था। जब वो दो - ढाई बरस की थी तभी उनके माता - पिता गुज़र गये थे। टुनटुन का एक भाई था जो उनसे आठ - नौ बरस बड़ा था , उसका नाम हरी था वो भी जब टुनटुन तीन - चार बरस की रही होंगी वो भी गुज़र गया। ऐसे में उनके चाचा ने उनकी परवरिश की।
बचपन में रेडियो सुन - सुन कर उमा को गाने का शौक हो गया। उनकी दिली तमन्ना थी कि वो फिल्मों में गीतों को गाये। लेकिन उस दौर में लड़कियों को फिल्मों में गायिका बनना तो दूर उनकी पढ़ाई होना तक मुश्किल था। ऐसे में किसी तरह वो मुंबई आ गयी और सीधे वो संगीतकार नौशाद से मिली और उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वो उन्हें फिल्म में गाने का मौका दें । नौशाद के सामने वो जिद पर अड़ गईं कि अगर उन्हें गाने का मौका नहीं मिला, तो वो समुद्र में कूद जायेंगी। नौशाद साहब ने टुनटुन का छोटा सा ऑडिशन लिया और उनकी आवाज से प्रभावित होकर उन्हें तुरंत काम दे दिया।इस तरह उन्होंने पहला गाना गाया नाज़िर की फिल्म "वामिक अज़रा " ( १९४६ ) में। इसके बाद उन्हें गाना " अफसाना लिख रही हूँ दिल बेक़रार का " ( दर्द - १९४७ ) मिला जिस गाने को आज भी श्रोता सुनना पसंद करते हैं। इस गीत के बाद टुनटुन की तो जैसे लॉटरी निकल गई। उन्होंने एक - एक करके करीब ५० गीतों को गाया। फिर वो अपनी शादीशुदा व्यस्त हो गयी। लेकिन फिर कुछ पारिवारिक मजबूरी के चलते उन्होंने दोबारा फिल्मों में गीत गाने के बारें में सोचा लेकिन उस समय की गायिकाओं लता मंगेशकर और आशा भोंसले के सामने उनका गाना मुश्किल था ऐसे में संगीतकार नौशाद ने ही उमा देवी से कहा कि, "वो फिल्मों में अभिनय क्यों नहीं करती।" क्योंकि उमा देवी का खुशनुमा मिज़ाज़ और गज़ब की कॉमिक टाइमिंग थी । उमा देवी ने नौशाद साहब की बात सुन कर कहा कि , " मैं फिल्म में काम तभी करूँगी अगर इस फिल्म में दिलीप कुमार भी होंगे। इत्तेफाक से उनकी पहली फिल्म "बाबुल " के नायक दिलीप कुमार ही थे। बस इसी फिल्म से हम सबकी प्रिय "टुनटुन" का जन्म हुआ। क्योंकि इससे पहले वो उमा देवी के नाम से गीतों को गाती थीं। जब उमा देवी ने फिल्मों में काम करने के बारें में सोचा , उनका वजन भी बढ़ चुका था ऐसे में उनके गोल मोल शरीर को देखकर उनके प्रिय अभिनेता दिलीप कुमार ने ही उनका नाम टुनटुन रख दिया।
५ दशको तक टुनटुन ने हिंदी , उर्दू और पंजाबी भाषा की करीब १९८ फिल्मों में काम किया।उन्होंने अपने समय के सभी बड़े हास्य कलाकारों जैसे भगवान दादा, आगा , सुन्दर, मुकरी , धूमल , जॉनी वॉकर और केश्टो मुखर्जी के साथ काम किया है। उमा के टुनटुन नाम रखते ही वो दर्शकों में लोकप्रिय होती चली गयी। हालाँकि हर फिल्म में उनके भारी शरीर का मजाक बनता था और दर्शक भी उनको परदे पर देखते ही हँस हँस कर लोट पोट हो जाते थे। अपने भारी आकार के चलते टुनटुन आज भी हम सबके बीच लोकप्रिय हैं कि जब हम किसी मोटी महिला को देखते हैं तो उसे टुनटुन
कहते हैं।
टुनटुन ने फिल्म बाबुल (१९५० ) से अभिनय की ओर पहला कदम रखा और इसके बाद उन्होंने बाज ,आर पार ,उड़न खटोला , मिस्टर एंड मिसेज ५५, श्री ४२० , मिस कोकाकोला, राजहठ, बेगुनाह, उजाला, कोहिनूर, नया अंदाज़, १२ ओ क्लॉक, दिल अपना और प्रीत पराई, कभी अन्धेरा कभी उजाला, मुजरिम, जाली नोट, एक फूल चार कांटे, कश्मीर की कली, अक़लमन्द, सीआईडी 909, दिल और मोहब्बत, एक बार मुस्कुरा दो , अन्दाज़, जागते रहो ,पॉकेटमार ,सी आई डी ,प्यासा , कागज़ के फूल , दिल भी तेरा हम भी तेरे ,बंबई का बाबू ,गंगा जमुना , प्रोफ़ेसर ,चौहदवी का चाँद , सन ऑफ़ इंडिया उस्तादों के उस्ताद , शिकारी, गहरा दाग ,एक दिल सौ अफ़साने , ब्लफ मास्टर ,मिस्टर एक्स इन बॉम्बे , कश्मीर की कली , गंगा की लहरें ,राजकुमार ,काजल , जब जब फूल खिलें ,अली बाबा ४० चोर , फूल और पत्थर , दिल दिया दर्द लिया ,उपकार , आखिरी खत ,आबरू , बहारों की मंजिल ,साधु और शैतान शराफत , दो रास्ते गीत , आंसू और मुस्कान ,हीर राँझा , जौहर महमूद इन हांगकांग ,हलचल , हँगामा , समाधि , मोम की गुड़िया ,बेईमान , अपराध , बिंदिया और बन्दूक ,आँखों आँखों में , गोमती के किनारे ,बंधे हाथ , कच्चे धागे ,ठोकर , शैतान , नया दिन नई रात ,अमीर गरीब , धोती लोटा और चौपाटी ,रंगीला रतन , बंडलबाज़,आपबीती , नागिन ,अमानत , चाचा भतीजा , सत्यम शिवम सुंदरम ,अँखियो के झरोखे से , लोक परलोक ,बातों बातों में , कुर्बानी , बीवी ओ बीवी , सन्नाटा ,नमक हलाल, हथकड़ी, डिस्को डांसर पेंटर बाबू , हादसा , कुली दीवाना तेरे नाम का , कसम धंधे की, आदि फिल्मों में अभिनय किया और अपने चाहने वालों को जी भर कर हँसाया।
टुनटुन का नाम सुनते ही एक गोल-मटोल काया और हँसता-मुस्कुराता चेहरा आज भी हमारी आँखों के सामने नाच उठता है। टुनटुन को बॉलीवुड की पहली सबसे सफ़ल महिला कॉमेडियन कहा जाये, तो गलत न होगा। उस दौर में अपनी कॉमेडी से उन्होंने जो ख्याति अर्जित की, उतनी ख्याति किसी अन्य महिला कॉमेडियन को हासिल नहीं हुई। गोल मटोल हम सबकी टुनटुन ने ८० साल की उम्र में २३ नवम्बर २००३ को मुंबई में अंतिम साँस ली।
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