१५ अगस्त को रिलीज़ हुई "सिंघम रिटर्न्स " और २२ अगस्त को रिलीज़ हुई "मर्दानी " अब अगले सप्ताह यानि २९ अगस्त को रिलीज़ होगी "आइडेंटिटी कार्ड - एक लाइफ लाइन " इन तीनों ही फिल्मों में एक बात बिलकुल ही सामान्य है और यह कि इन तीनों ही फिल्मों में पुलिस वालों की जिंदगी को दिखाया है.
'सिंघम रिटर्न्स' का पुलिस अधिकारी बाजीराव सिंघम जहाँ समाज में व्याप्त बुराईयों को हल करता है, भ्रष्ट नेताओं को पकड़ते हैं. अपराधियों को घसीट कर पुलिस थाने ले जाते हैं और एक्शन सीन करते हैं और साथ में बहुत सारी गाड़ियाँ भी हवा में उड़ाते हैं. मार - पीट करते हैं लेकिन उनको कहीं भी चोट नही लगती, वर्दी में कहीं कोई दाग नही लगता।
"मर्दानी" में रानी मुखर्जी सीनियर इन्स्पेक्टर हैं मुंबई पुलिस में. शिवानी की भतीजी की सहेली प्यारी को देह व्यापार माफिया किडनैप कर लेते हैं कैसे - कैसे वो उस बच्ची को उस दल - दल निकालती है और गैंग का पर्दा फ़ाश करती है. गाली देती है मार पीट करती है और मार पीट करते समय खुद भी चोट खाती है। जबकि सिंघम का बाजीराव गुंडों को मारता है लेकिन गाली नही देता बस "आता माझा सटकली " और "आली रे आली" भारी भरकम संवाद बोलता है.
तीसरी फिल्म "आइडेंटिटी कार्ड - एक लाइफ लाइन " जो आने वाली है २९ अगस्त को। इसमें कश्मीर के पुलिस वाले दिखाये गये हैं जो की पुलिस की ड्यूटी कर रहे हैं लेकिन उन्हें अपनी परेशानी रह - रह कर याद आती हैं.
जो भी हो हमारी फिल्मों में पुलिस को इतना अच्छा और इतना सच्चा दिखाते हैं जबकि असली जीवन में शायद ही किसी को पाला ऐसे किसी पुलिस वाले से पड़ा हो। फिल्म देख कर ही शायद पुलिस वालों में कुछ जोश आ जाये। वो गाड़िया न उड़ाये , गाली न दे जो की सच में वो देते हैं , बस सही को सही और गलत को गलत समझे बस इतना ही चाहते हैं. तो फ़िल्में क्या सारा का सारा हिन्दुस्तान उनके प्रति नत मस्तक हो जायेगा।
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