Wednesday, February 4, 2015

आखिर कब तक महेश भट्ट ऐसी ही फ़िल्में बनाते रहेगें ?

एक वो जमाना था कि जब दर्शक महेश भट्ट की फिल्मों के दीवाने थे। सारांश, अर्थ, जख्म, नाम, डैडी, आशिक़ी, सड़क, दिल है की मानता नही और भी अनेकों फ़िल्में महेश भट्ट की आयी और सुपर हिट भी हुई।  बतौर निर्देशक तो उनकी फिल्मों को दर्शक पसंद करते ही थे,  इसके अलावा भी वो जिन फिल्मों से जुड़े होते थे दर्शकों को उम्मीद होती थी कि वो फ़िल्में अच्छी ही होंगी। पर जबसे २००२ में उनकी फिल्म "राज़" आयी और उसे दर्शकों ने पसंद भी किया और इस फिल्म ने कमाई भी की बस तब से उनके पास एक ही फार्मूला रह गया है और बस इसी फॉर्मूले पर वो धड़ाधड़ फ़िल्में बनाते जा रहे हैं और दर्शकों को बोर करते जा रहे हैं। एक  खूबसूरत लोकेशन, पहाड़ , नदी , झरना लेकिन सुनसान , वहां एक बहुत ही खूबसूरत लड़की लेकिन अकेली और डरी सहमी, लड़का उसकी मदद करता है क्योंकि वो उसकी ख़ूबसूरती पर मर मिटा है और फंस जाता है। 

पिछले दिनों रिलीज़ हुई फिल्म "खामोशियाँ " के प्रचार में भी उन्होंने यही कहा कि "हमारी यह फिल्म "राज़" जैसी है हालांकि पहली फिल्म राज़ के बाद राज़ -द मिस्ट्री कॉन्टिन्यूस  (२००९ ) राज़ थ्री डी (२०१२ )आ चुकी हैं लेकिन वो फ़िल्में पहली राज़ से बहुत जुदा थी। " खामोशियाँ " फिल्म पहली राज़ की अगली कड़ी है इसमें भरपूर रोमांस और बहुत सारा डर है। उनका यही भी कहना है की इस तरह की फ़िल्में दर्शकों को भी पसंद आती है और ऐसी फ़िल्में ट्रेड के हिसाब से भी अच्छी रही हैं. " तो महेश भट्ट जी कब तक आखिर आप ऐसी ही फ़िल्में बनाते रहेंगे। जब भी इस तरह की आपकी कोई भी फिल्म रिलीज़ होती है तो दर्शक समझ जाते हैं कि इसमें क्या होगा ?
  आपकी फिल्मों में  नये चेहरे , खूबसूरत लोकेशन , सेक्सी और रोमांटिक सीन साथ में कानों को लुभाने वाला मधुर संगीत होता है लेकिन दर्शक अब इन सबसे बुरी तरह बोर हो चुके हैं। महेश भट्ट के चेले  विक्रम भट्ट भी इसी तरह की बिमारी से ग्रस्त हैं.  

अब अति हो गयी दर्शक इस तरह की नही बल्कि वो  फिर से आपकी  पुरानी जैसी फ़िल्में देखना चाहते हैं
और चाहते हैं कुछ नयी कहानियाँ और कुछ नया रोमांच

।   


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