1978 में इसी तरह की देव आनंद की फिल्म आयी थी "देस परदेस" ।यह फिल्म अच्छी थी , कलाकारों का अभिनय , गीत संगीत सभी कुछ अच्छा था । कहीं भी कुछ ओवर नहीं था। डंकी और देस परदेस की कहानी बहुत कुछ एक सी है लेकिन जो भावनाएं देस परदेस को देखने के बाद उमड़ती हैं वो डंकी को देखकर नही उमड़ती।
जहां तक अंग्रेजी भाषा को लेकर हास्य बनाने की बात है तो उसमें मज़ा आ रहा था लेकिन इस तरह का हास्य पहले भी दर्शकों ने देखा।
ऐसा नहीं है कि डंकी में कलाकारों ने अच्छा अभिनय नहीं था , विकी कौशल तो पूरी महफ़िल ही लूट ली। जहां तक शाहरुख खान की बात है उन्हे देखकर उनकी फिल्म "जीरो" और फैन की याद आती है। जब जब उन्हें जवां दिखाने की कोशिश की जाती है वो ऐसे ही लगने लगते हैं।
एक से बढ़कर एक फिल्में दर्शकों को देने वाले राज कुमार हिरानी भी शाहरुख खान को लेकर अच्छी फिल्म नहीं बना पाए। समझ नहीं आया क्यों उन्होंने इस फिल्म को बनाया।तापसी ने भी शाहरुख के साथ फिल्म कर ली। ऐसा सुनहरा मौका शायद ही अब उन्हें मिले।
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