Saturday, June 15, 2024

मैदान ने क्यों कोई झंडे नहीं गाड़े समझ नहीं आया जबकि यह बेहतरीन फिल्म है

 

कल मैने प्राइम विडियो पर प्रसारित निर्देशक अमित रविंद्रनाथ शर्मा और अभिनेता अजय देवगन की फिल्म "मैदान" देखी। अजय देवगन की यह फिल्म "मैदान" ११ अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। यह फिल्म भारत के लीजेंडरी माने जाने वाले हैदराबाद के फुटबॉल कोच सैय्यद अब्दुल रहीम के फुटबॉल के खेल के गोल्डन एरा की कहानी कहती है।



हमारे देश में स्पोर्ट्स पर बनी फिल्मों को दर्शक बेहद पसंद करते हैं। इससे पहले फिल्म चक दे, भाग मिल्खा भाग, मैरी कॉम, दंगल, जैसी फिल्मों को दर्शकों का खूब प्यार मिला है। ये सभी फिल्में सच पर आधारित थी। मैदान भी सच्ची कहानी से ही प्रेरित है। हालांकि 3 घंटे की है यह फिल्म , लेकिन फिल्म देखते समय यह वक्त कैसे बीत जाता है समझ नहीं आता। फिल्म देखते समय यह लगता ही नहीं कि हम कोई फिल्म देख रहे हैं। ऐसा महसूस होता है कि सच में हमारी आंखों के सामने ही कुछ अच्छा और दिल को छू लेने वाला कुछ घट रहा है।अगर चक दे से पहले यह फिल्म आयी होती तो इसकी सफलता का भी रिकॉर्ड कायम होता। लेकिन मैदान ने क्यों कोई झंडे नहीं गाड़े समझ नहीं आया। क्या इस वजह से कि जब यह फिल्म आयी तो देश का माहौल कुछ अलग था । देश में चुनाव की तैयारी हो रही थी और धर्म के नाम पर देश बंटा हुआ था। जबकि यह फिल्म १९५२ के समय की फिल्म है , जब हमारे खिलाड़ी नंगे पैर खेला करते थे क्योंकि उनके पास जूते भी नहीं थे। ऐसे समय में फुटबॉल कोच सैय्यद अब्दुल रहीम देश के चुने हुए खिलाड़ियों के लिए कैसे जूते होने चाहिए इसका भी ध्यान रखते हैं।


जैसा कि सभी को पता है खेलों में भी राजनीति होती है तो सैय्यद अब्दुल रहीम भी राजनीति का शिकार होते हैं। ज्यादा सिगरेट पीने की वजह से उन्हें फेफड़ों का कैंसर भी हो जाता है बावजूद इसके वो हार नहीं मानते और १९६२ में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स के फाइनल्स में दक्षिण कोरिया को पछाड़कर देश को स्वर्ण पदक का गौरव दिलाते हैं ।


सैयद अब्दुल रहीम के रूप में अजय देवगन का अभिनय दिल को छू लेने वाला है।  इस फिल्म में सैयद अब्दुल रहीम के रूप में अजय देवगन ने सिगरेट बहुत पी है।  जब जब स्क्रीन में अजय दिखाई देते हैं ,उनके हाथ में सिगरेट होती है और साथ में चेतावनी भी दिखाई देती है। ऐसा कहा जाता है कि असली जिंदगी में भी अजय सिगरेट बहुत पीते हैं।  फिल्म में उनका एक संवाद भी है। जब उन्हें लंग्स कैंसर हो जाता है तो डॉ उन्हें सिगरेट न पीने की सलाह देता है तो सैयद अब्दुल रहीम बने अजय कहते हैं "अब नहीं पीऊँगा तो क्या बच जाऊँगा " 
अजय के अलावा उनकी पत्नी की भूमिका में प्रियामणि ने अच्छा काम किया है। दुष्ट और नकारात्मक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट बने गजराज राव का अभिनय भी उम्दा है। खिलाड़ी चुन्नी गोस्वामी के रूप में अमर्त्य रे, पीके बनर्जी के रूप में चैतन्य शर्मा, पीटर थांगराज के रोल में तेजस रविशंकर, जरनैल सिंह के किरदार में देविंदर सिंह, तुलसीदास बलराम की भूमिका में सुशांत वेदांदे, एसएस हाकिम के रोल में रिषभ जोशी और राम बहादुर छेत्री के किरदार में अमनदीप ठाकुर ने बढ़िया काम किया है।



निर्देशक अमित शर्मा ने फुटबॉल कोच सैय्यद अब्दुल रहीम की जीवनी को दर्शाते हुए कहीं भी कोच सैय्यद अब्दुल रहीम का महिमामंडन नहीं किया और न ही इसे मैली ड्रैमेटिक बनाया। मैंने पूरी फिल्म बिना पलक झपकाए हुए देखी है जबकि मैं इतनी लंबी फिल्म देखना पसंद नहीं करती। निर्देशक ने सहजता के साथ रहीम की इनोवेटिव खेल रणनीति को खूबसूरती से दर्शाया है । स्क्रीन पर ऐतिहासिक फुटबॉल मैचे को थ्रिलर अंदाज में दिखाया है । तुषार कांति रे और फ्योडोर लियास की सिनेमैटोग्राफी भी काबिले तारीफ़ है। १९५० - ६० के दशक के कोलकाता को भी खूबसूरती से दिखाया गया है। फिल्म को विश्वसनीय लुक देने के लिए निर्देशक ने रियल फुटेज का खूबसूरती से इस्तेमाल किया है। कॉस्ट्यूम डिपार्टमेंट ने अपना काम बखूबी किया है। उस दौर को दर्शाने के लिए वीएफएक्स का भी अच्छा इस्तेमाल किया गया है। ए आर रहमान का संगीत भी अच्छा है।
फिल्म के आखिरी में कोच सैय्यद सहित सभी रियल खिलाड़ियों को भी परदे पर दिखाकर निर्देशक ने वाहवाही लूटी है।
अगर आप खेलों के शौकीन हैं और नहीं भी हैं तो भी आपको एक बार फिल्म "मैदान " अवश्य देखनी चाहिए यकीनन आपको यह फिल्म बेहतरीन लगेगी।

मैं तुम में कैद परिंदा हूं’ - बरेली के गीतकार जेपी गंगवार की नई किताब

जे.पी.गंगवार का जन्म 15 जनवरी 1970 को देवीदास गंगवार और कलावती गंगवार के घर, गांव धिमनी - पोस्ट- धौरां जिला बरेली में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा धौरा व बरेली में हुई। जेपी ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, बी. ई. सिविल एम. एस. बिडवे इंजीनियरिंग कॉलेज लातूर से किया। 
जेपी को लेखन का शौक बचपन से था। मुम्बई में शुरुआती दिनों में उन्होने कई भजन लिखे जिन्हें भजन सम्राट अनूप जलोटा, वैशाली सामंत, स्वप्निल बांडोडकर ने आवाज दी थी। 
उनकी लिखी दो गजलों को प्रसिद्ध गज़ल गायक जाज़िम शर्मा ने अपनी एल्बम लफ्जों के दरमियान में गाया है। वर्तमान में आप महाराष्ट्र सरकार में इंजीनियर हैं और दिल्ली महाराष्ट्र सदन में रेजिडेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत है।
जे. पी. गंगवार की नई किताब  ‘मैं तुम में कैद परिंदा हूं’ आपके हाथों में है। इसे पढ़िए और मन के किसी कोने में मौजूद अपनी परिंदगी और परवाज को महसूस करिए। 
72 पेज की किताब  में जेपी ने गीतनुमा काव्यात्मक अभिव्यक्ति ज़ाहिर की हैं। उनकी रचनाओं को विशुद्ध साहित्य की कसौटी पर रख कर परखना सही नहीं होगा। उन्हें पढ़ते हुए फिल्मी प्रेम गीत पढ़ने जैसा ही भाव मन में आता है। अगर इन्हें संगीतबद्ध किया जाए, तो सुनने में ज्यादा आनंद आ सकता है। 

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रेम की कोमल भावनाओं को याद कर पाने की फुर्सत जे. पी. गंगवार निकालते रहे हैं, तो यही बड़ी बात है। याद कर पाने की ही फुर्सत नहीं, बल्कि सरकारी नौकरी में रहते हुए प्रेम के अंतरंग भावों को उन्होंने कागज पर उतारने का समय भी निकाला है ।

प्रेम की बहुत गूढ़ भंगिमाओं को विभिन्न बिंबों और प्रतीकों से पूरी कोमलता से महसूस कर पाना और उन्हें हू-ब-हू उतार पाने का माद्दा वैसे भी आज के दौर में बहुत कम दिखाई देता है।

ऐसे में जेपी गंगवार  ने सपाट बयानी में ही सही, अपना बहुत निजी दर्द, अपने बहुत से ऐहसासात को इस संकलन में उड़ेलने की कोशिश है, संकलन में देशभक्ति परक दो रचनाएं भी हैं।  

शीघ्र ही उनके लिखे गाने फिल्मों में भी सुनाई देंगे।


Thursday, February 22, 2024

मंत्र मुग्ध कर देने वाली आवाज़ के धनी अमीन सयानी की यादें

91 साल की उम्र में अमीन सयानी जी का निधन हो गया। उनको हम देश का पहला आर जे भी कह सकते हैं। रेडियो सिलोन में गीतों का कार्यक्रम बिनाका गीतमाला आता था हम सबने वहीं उनकी मीठी आवाज सुनी थी। अमीन जी के बोलने का अंदाज कुछ इस तरह था
"जी हां बहनो और भाइयो, मैं हूं आपका दोस्त अमीन सयानी और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला "

हर बुधवार को सभी श्रोता उनकी आवाज सुनने के लिए बेताब रहते थे।  आज अमीन जी हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी आवाज हमेशा हम सभी के कानों में गूंजती रहेगी।

बचपन से लेकर बड़े होने तक हजारों लाखों लोगों को तरह मैंने भी उनकी आवाज़ सुनी थी कभी सोचा नहीं था कि कभी उनसे मिलने का मौका भी मिलेगा । 2010 में म्यूजिक कंपनी सारेगामा से बिनाका गीतमाला की कुछ सी डी रिलीज हुई थी तब अमीन जी से मिलने का अवसर मिला । उनसे मिलकर ऐसा लगा जैसे मेरा एक सपना पूरा हुआ। बहुत ही विनम्रता से वो मुझसे मिले। जब उनसे बातचीत शुरू हुई तो ऐसा लगा जैसे मैं रेडियो सुन रही हूं जबकि वो मेरे सामने ही बैठे थे। हालांकि अमीन सयानी जी आप सशरीर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमेशा ही आप हमारी यादों में रहेंगे ।


Tuesday, February 20, 2024

डंकी या देस परदेस

पिछले दिनों नेटफ्लिक्स पर शाहरुख खान अभिनीत और राज कुमार हिरानी द्वारा निर्देशित फिल्म "डंकी" देखी। अपने और परिवार वालों के बेहतर भविष्य के लिए किस तरह लोग अवैध तरीके से विदेशों में पाउण्ड कमाने जाते हैं। अपने सपनों को पूरा करने विदेश तो जाते हैं लेकिन किस बदतर स्थिति में वो रहते हैं। यह सब इस फिल्म में दिखाया गया। 

1978 में इसी तरह की  देव आनंद की फिल्म आयी थी "देस परदेस" ।यह फिल्म अच्छी थी , कलाकारों का अभिनय , गीत संगीत सभी कुछ अच्छा था । कहीं भी कुछ ओवर नहीं था। डंकी और देस परदेस की कहानी बहुत कुछ एक सी है लेकिन जो भावनाएं देस परदेस को देखने के बाद उमड़ती हैं वो डंकी को देखकर नही उमड़ती। 
जहां तक अंग्रेजी भाषा को लेकर हास्य बनाने की बात है तो उसमें मज़ा आ रहा था लेकिन इस तरह का हास्य पहले भी दर्शकों ने देखा।
ऐसा नहीं है कि डंकी में कलाकारों ने अच्छा अभिनय नहीं था , विकी कौशल तो पूरी महफ़िल ही लूट ली। जहां तक शाहरुख खान की बात है उन्हे देखकर उनकी फिल्म "जीरो" और फैन की याद आती है। जब जब उन्हें  जवां दिखाने की कोशिश की जाती है वो ऐसे ही लगने लगते हैं। 
एक से बढ़कर एक फिल्में दर्शकों को देने वाले राज कुमार हिरानी भी शाहरुख खान को लेकर अच्छी फिल्म नहीं बना पाए। समझ नहीं आया क्यों उन्होंने इस फिल्म को बनाया।तापसी ने भी शाहरुख के साथ फिल्म कर ली। ऐसा सुनहरा मौका शायद ही अब उन्हें मिले।


मैदान ने क्यों कोई झंडे नहीं गाड़े समझ नहीं आया जबकि यह बेहतरीन फिल्म है

  कल  मैने प्राइम विडियो पर प्रसारित निर्देशक अमित रविंद्रनाथ शर्मा और अभिनेता अजय देवगन की फिल्म "मैदान" देखी। अजय देवगन की यह फि...